Monday, August 23, 2010

एक गांव की छोरी

मैं उन दिनों गांव में अपनी दीदी के घर आया हुआ था। उनके पास काफ़ी जमीन थी, जीजा जी की उससे अच्छी आमदनी थी। उनकी लड़की कमली भी जवान हो चली थी। कमली बहुत तेज लड़की थी, बहुत समझदार भी थी। मर्दों को कैसे बेवकूफ़ बनाना है और कौन सा काम कब निकालना है वो ये अच्छी तरह जानती थी।

एक दिन सवेरे जीजू की तबीयत खराब होने पर उन्हें दीदी शहर में हमारे यहाँ पापा के पास ले गई। हमारे गांव से एक ही बस दोपहर को जाती थी और वही बस दूसरे दिन दोपहर को चल कर शाम तक गांव आती थी।

कमली और मैं दीदी और जीजू को बस पर छोड़ कर वापस लौट रहे थे। मुझे उसे रास्ते में छेड़ने का मन हो आया। मैंने उसके चूतड़ पर हल्की सी चिमटी भर दी। उसने मुझे घूर कर देखा और बोली,"खबरदार जो मेरे ढूंगे पर चिमटी भरी..."

"कम्मो, वो तो ऐसे ही भर दी थी... तेरे ढूंगे बड़े गोल मटोल है ना..."

"अरे वाह... गोल मटोल तो मेरे में बहुत सी चीज़ें है... तो क्या सभी को चिमटी भरेगा?"

"तू बोल तो सही... मुझे तो मजा ही आयेगा ना..." मैंने उसे और छेड़ा।

"मामू सा... म्हारे से परे ही रहियो... अब ना छेड़ियो..."

"कमली ! थारे बदन में कांई कांटा उगाय राखी है का"

"बस, अब जुबान बंद राख... नहीं तो फ़ेर देख लियो..." उसकी सीधी भाषा से मुझे लगा कि यह पटने वाली नहीं है। फिर भी मैंने कोशिश की... उसकी पीठ पर मैंने अपनी अन्गुली घुमाई। वो गुदगुदी के मारे चिहुंक उठी।

"ना कर रे... मने गुदगुदी होवे..."

"और करूँ कई ... मने भी बड़ो ही मजो आवै..." और मैंने उसकी पीठ पर अंगुलियाँ फिर घुमाई। उसकी नजरे मुझ पर जैसे गड़ गई, मुझे उसकी आँखों में अब शरारत नहीं कुछ और ही नजर आने लगा था।

"मामू सा... मजा तो घणो आवै... पर कोई देख लेवेगो... घरे चाल ने फिर करियो..."

उसे मजा आने लगा है यह सोच कर एक बार तो मेरा लण्ड खड़ा हो गया था। उसका मूड परखने के लिये रास्ते में मैंने दो तीन बार उसके चूतड़ो पर हाथ भी लगाया, पर उसने कोई विरोध नहीं किया।

घर पहुंचते ही जैसे वो सब कुछ भूल गई। उसने जाते ही सबसे पहले खाना बनाया फिर नहाने चली गई। मैंने बात आई गई समझते हुये मैंने अपने कपड़े बदले और बनियान और पजामा पहन कर पढ़ने बैठ गया। पर मन डोल रहा था। बार बार रास्ते में की गई शरारतें याद आने लगी थी।

इतने में कमली ने मुझे आवाज दी,"मामू सा... ये पीछे से डोरी बांध दो..."

मैं उसके पास गया तो मेरा शरीर सनसनी से भर गया। उसने एक तौलिया नीचे लपेट रखा था मर्दो वाली स्टाईल में... और एक छोटा सा ब्लाऊज जिसकी डोरियाँ पीछे बंधती हैं, बस यही था। मैंने पीछे जा कर उसकी पीठ पर अंगुलियां घुमाई...

"अरे हाँ मामू सा... आओ म्हारी पीठ माईने गुदगुदी करो... मजो आवै है..."

"तो यह... ब्लाऊज तो हटा दो !"

"चल परे हट रे... कोई दीस लेगा !" उसकी इस हाँ जैसी ना ने मेरा उत्साह बढ़ा दिया।

"अठै कूण है कम्मो बाई... बस थारो मामू ही तो है ना... और म्हारी जुबान तो मैं बंद ही राखूला !"

"फ़ेर ठीक है... उतार दे..." मैंने उसका छोटा सा ब्लाउज उतार दिया। फिर उसकी पीठ पर अंगुलियों से आड़ी तिरछी रेखाएँ बनाने लगा। उसे बड़ा आनन्द आने लगा। मेरा लण्ड कड़क होने लगा।

"मामू सा, थारी अंगुलियों माणे तो जादू है..." उसने मस्ती में अपनी आंखें बंद कर ली।

मैंने झांक कर उसकी चूचियां देखी। छोटी सी थी पर चुचूक उभार लिये हुये थे। अभी शायद उत्तेजना में कठोर हो गई थी और तन से गये थे। मैंने धीरे से अंगुलियां उसके चूतड़ों की तरफ़ बढा दी और उसके चूतड़ों की ऊपर की दरार को छू लिया। उसे शायद और मजा आया सो वह थोड़ा सा आगे झुक गई, ताकि मेरी अंगुलियाँ और भीतर तक जा सके। उसका बंधा हुआ तोलिया कुछ ढीला हो गया था। मैंने हिम्मत करके अपना दूसरा हाथ उसकी पीठ पर सरकाते हुये उसकी चूंचियों की तरफ़ आ गया और उसकी एक एक चूची को सहला दिया। कमली ने मुझे नशीली आंखों से देखा और धीरे से मेरी अंगुलियाँ वहां से हटा दी। मैंने फिर से कोशिश की पर इस बार उसने मेरे हाथ हटा दिये।

कुछ असमंजस में मुझे घूरने लगी ।

"बस अब तो घणा होई गयो ... अब... अब म्हारी अंगिया पहना दो..."

"अह ... अ हां लाओ" मुझे लगा कि जल्दबाजी में सब कुछ बिगड़ गया। उसने अपने चूतड़ तक तो अंगुलियां जाने दी थी... अब तो वो भी बात गई...। उसने अपना ब्लाऊज ठीक से पहना और भाग कर भीतर कमरे में बाकी के कपड़े पहनने चली गई।

रात को मैं कमली के बारे में ही सोच रहा था कि वो दरवाजे पर खड़ी हुई नजर आ गई।

"आओ कम्मो... अन्दर आ जाओ !" उसकी आँखों में जैसे चमक आ गई। वो जल्दी से मेरे पास आ गई।

"मामू सा... आपरे हाथ में तो चक्कर है... मने तो घुमाई दियो... एक बार और अंगुलियां घुमाई दो !" उसकी आँखों में लगा कि वासना भरी चमक है। मेर लण्ड फिर से कामुक हो उठा।

"पर एक ही जगह पर तो मजो को नी आवै... जरा थारे सामणे भी तो करवा लियो..." मैंने अपनी जिद बता दी। यदि चुदाई की इच्छा होगी तो इन्कार नहीं करेगी। वही हुआ...

"अच्छा जी... कर लेवो बस... " उसकी इजाजत लेकर मैंने उसे बिस्तर पर बैठा दिया और अपनी अंगुलियां उसके बदन पर घुमाने लगा। उसका ब्लाऊज मैंने उतार दिया और अपनी अंगुलियाँ उसकी चूचियों पर ले आया और उससे खेलने लगा। मेरे ऊपर अब वासना का नशा चढ़ने लगा था। उसकी तो आंखें बंद थी और मस्ती में लहरा रही थी। मेरा लण्ड कड़ा हो कर फ़ूल गया था। जब मुझसे और नहीं रहा गया तो मैंने दोनों हाथों से उसके बोबे भींच डाले और उसे बिस्तर पर लेटा दिया।

"ये कांई करो हो... हटो तो..." उसे उलझन सी हुई।

"बस कमली... आज तो मैं तन्ने नहीं छोड़ूंगा... चोद के ही छोड़ूंगा !"

"अरे रुक तो... यु मती कर यो... हट जा रे..." उसका नशा जैसे उतर गया था।

"कम्मो... तु पहले ही जाणे कि म्हारी इच्छा थारे को चोदवां की है ?"

"नहीं वो आप, मणे अटे दबावो, फ़ेर वटे दबावो... सो मणे लागा कि यो कांई कर रिया हो, फेर जद बतायो कि चोदवा वास्त कर रिओ है तो वो मती करो... माणे अब छोड़ दो... थाने म्हारी कसम है !"

मैंने तो अपना सर पकड़ लिया, सोचा कि मैं तो इतनी कोशिश कर रहा हू और ये तो चुदना ही नहीं चाहती है। मैंने उसका घाघरा और ब्लाऊज उतारने की कोशिश की। पर वो अपने आप को बचाती रही।

"मामू सा... देखो ना कसम दी है थाणे... अब छोड़ दो !" पर मेरे मन में तो वासना का भूत सवार था। मैंने उसका घाघरा पलट दिया और उसके ऊपर चढ़ गया और अपने लण्ड को उसकी चूत पर रगड़ने लगा। अब मैंने उसे अपनी बाहों में दबा कर चूमना चालू कर दिया। मेरा लण्ड उसकी चूत पर बहुत दबाव डाल रहा था। छेद पर सेटिंग होते ही लण्ड चूत में उतर गया। कमली ने तड़प कर लण्ड बाहर निकाल लिया।

"मां ... मने मारी नाक्यो रे... आईईई..." मैंने फिर से उसे दबाने की कोशिश की।

"देख कमली , थाने चोदना तो है ही... अब तू हुद्दी तरह से मान जा..."

"और नहीं मानी तो... तो महारा काई बिगाड़ लेगो..."

"तो फिर ये ले..." मैंने फिर से जोर लगाया और लण्ड सीधा चूत की गहराईयों में उतरता चला गया...।

"हाय्... मैया री माने चोद दियो रे... अच्छा रुक जा... मस्ती से चोदना !"

मैं एक दम से चौंक गया। तो ये सब नाटक कर रही थी... वो खिलखिला कर हंस पड़ी।

"कम्मो, जबरदस्ती में जो मजा आ रहा था... सारा ही कचरो कर मारा !"

"अबे यूं नहीं, म्हारे पास तो आवो, थारा लवड़ा चूस के मजा लूँ ... ध्हीरे सू करो... ज्यादा मस्ती आवैगी !" उसने मुझे अपने पास खींचा और मेरा फ़नफ़नाता हुआ लण्ड अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। मैं मस्ती में झूम हो गया, मैं अपनी कमर यूं हिलाने लगा कि जैसे उसके मुँह को चोद रहा हूँ। मेरे लण्ड को अच्छी तरह चूसने के बाद अब वो लेट गई। उसने अपनी योनि मेरे मुँह के पास ले आई और अपनी टांगें ऊपर उठा दी... उसकी सुन्दर सी फ़ूली हुई चूत मेरे सामने आ गई। हल्के भूरे बाल चूत के आस पास थे... उसकी चूत गीली थी... मैंने अपनी जीभ उसकी भूरी सी और गुलाबी सी पंखुड़ियों पर गीलेपन पर रगड़ दी, मुझे एक नमकीन सा चिकना सा अहसास हुआ... उसके मुख से सिसकारी निकल गई।

"आह्ह्ह मामू सा... मजो आ गयो... और करो..." कमली मस्ती में आ गई। मैंने अपनी जीभ उसकी गीली योनि में डाल दी। उसकी चूत से एक अलग सी महक आ रही थी। तभी उसका दाना मुझे फ़ड़फ़ड़ाता हुआ नजर आ गया। मैं अपने होठों से उसे मसलने लगा।

"ओई... ओ... मेरी निकल जायेगी ... धीरे से...चूसो... !" वो मस्ती में खोने लगी थी। हम दोनों एक दूसरे को मस्त करने में लगे थे...

तभी कमली ने कहा,"मामू सा लण्ड में जोर हो तो म्हारी गाण्ड चोद ने बतावो !"

"इसमें जोर री कांई बात है ... ढूंगा पीछे करो... और फ़ेर देखो म्हारा कमाल... !"

कम्मो ने पल्टी मारी और बिस्तर पर कुतिया बन गई। उसके दोनो सुन्दर से गोल गोल चूतड़ उभर कर मेरे सामने आ गये। मैंने उन्हें थपथपाया और दोनों चूतड़ हाथों से और अधिक फ़ैला दिए। उसका कोमल सा भूरा छेद सामने आ गया। मैंने पास पड़ी कोल्ड क्रीम उसकी गाण्ड के छेद में भर दिया और अपना मोटा सा लण्ड का सुपाड़ा उस पर रख दिया।

"मामू सा नाटक तो मती करो ... म्हारी गाण्ड तो दस बारह मोटे मोटे लण्ड ले चुकी है... बस चोदा मारो जी ... मने तो मस्ती में झुलाओ जी !"

मैं मुस्करा उठा... तो सौ सौ लौड़े खा कर बिल्ली म्याऊं म्याऊं कर रही है। मैंने एक ही झटके में लण्ड गाण्ड में उतार दिया। सच में उसे कोई दर्द नहीं हुआ, बल्कि मुझे जरूर लग गई। मैं उसकी गाण्ड में लण्ड अन्दर बाहर करने लगा। मुझे तो टाईट गाण्ड के कारण तेज मजा आने लगा। मेरी रफ़्तार बढ़ती गई। फिर मुझे उसकी चूत की याद आई। मैंने उसी स्थिति में उसकी चूत में लण्ड घुसेड़ दिया... सच मानो चूत का में लण्ड घुसाते ही चुदाई का मधुर मजा आने लगा। चूत की चुदाई ही आनन्द दायक है... कम्मो को भी तेज मजा आने लगा। वो आनन्द के मारे सिसकने लगी, कभी कभी जोर का धक्का लगता तो खुशी के मारे चीख भी उठती थी। उसके छोटे छोटे स्तनो को मसलने में भी बहुत आनन्द आ रहा था।

"मामू ... ठोको, मने और जोर सू ठोको ... म्हारी तो पहले सु ही फ़ाट चुकी है और फ़ाड़ नाको..."

"म्हारी राणी जी... मजो आ रियो है नी... उछल उछक कर थारे को ठोक दूंगा ... पूरा के पूरा लौड़ा पीव लो जी !"

"मैया री... लौड़ो है कि मोटो डाण्डो लगा राखियो है... मजो आ गियो रे... दे मामू सा ...चोद दे !"

मेरा लण्ड उसकी चूत में तेजी से अन्दर बाहर हो रहा था। मेरा लण्ड में अब बहुत तरावट आ चुकी थी। वह फ़ूलता जा रहा था। उसकी चूत की लहरें मुझे महसूस होने लगी थी। उसने तकिया अपनी छाती से दबा लिया और मेरा हाथ वहाँ से हटा दिया।

तभी उसकी चूत लप लप कर उठी... "माई मेरी... चुद गई... हाई रे... मेरा निकला... मामू सा... मेरा निकला... गई मैं तो... उह उह उह।"

उसका रज छूट पड़ा। मेरा भी माल निकला हो रहा था। मैंने समझदारी से लण्ड बाहर निकाला और मुठ मारने लगा। एक दो मुठ मारने पर ही मेरा वीर्य पिचकारी के रूप में उछल पड़ा। लण्ड के कुछ शॉट ने मेरा वीर्य पूरा स्खलित कर दिया था। मैं पास ही में बैठ गया।

"तू तो लगता है खूब चुदी हो..."

"हां मामू सा... क्या करूँ ... मेरे कई लड़के दोस्त हैं... चुदे बिना मन नहीं लागे ... और वो छोरा ... हमेशा ही लौड़ा हाथ में लिये फिरे... फिर चुदने की लग ही जावे के नहीं !"

"तब तो आपणे घणी मस्ती आई होवेगी..." मैंने उसकी मस्ती के बारे पूछा।

" छोड़ो नी, बापु और बाई सा तो काले हांझे तक आ जाई, अब टेम खराब मती कर ... आजा... लग जा... फ़ेर मौका को नी मिलेगा !" उसके स्वर में ज्वार उमड़ रहा था।

अब हम दोनो नंगे हो कर बिस्तर पर लेट गये थे और प्यार से धीरे धीरे एक दूसरे को सहला रहे थे। जवान जिस्म फिर से पिघले जा रहे थे... जवानी की खुशबू से सरोबार होने लगे थे... नीचे छोटा सा सात इंच का कड़क शिश्न योनि में घुस चुका था। हम दोनों मनमोहक और मधुर चुदाई का आनन्द ले रहे थे। ऐसा लगता था कि ये लम्हा कभी खत्म ना हो... बस चुदाई करते ही जायें...

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