Saturday, August 28, 2010

दूध पियोगे ?

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Wednesday, August 25, 2010

प्रगति का अतीत- 1

प्रगति का जन्म तमिलनाडू के एक गरीब परिवार में हुआ था। उसके पिता बागवानी का काम करते थे और माँ घरों में काम करती थी। प्रगति की दो छोटी बहनें थी जो उससे 3 साल और 5 साल छोटी थी। प्रगति इस समय करीब 18 साल की थी और उसका ज़्यादा समय अपनी बहनों की देखभाल में जाता था क्योंकि उसके माता पिता बाहर काम करते थे। प्रगति स्कूल भी जाती थी। ज्यादातर देखा गया है कि समाज के बुरे लोगों की नज़र गरीब घरों की कमसिन लड़कियों पर होती है। वे सोचते हैं कि गरीब लड़की की कोई आकांक्षा ही नहीं होती और वे उसके साथ मनमर्ज़ी कर सकते हैं। प्रगति जैसे जैसे बड़ी हो रही थी, आस पास के लड़कों और आदमियों की उस पर नज़र पड़ रही थी। वे उसको तंग करने और छूने का मौका ढूँढ़ते रहते थे। प्रगति शर्म के मारे अपने माँ बाप को कुछ नहीं कह पाती थी।

एक दिन स्कूल में जब वह फीस भर रही थी, तो मास्टरजी ने उसे अकेले में ले जाकर कहा कि अगर वह चाहे तो वे उसकी फीस माफ़ करवा सकते हैं। प्रगति खुश हो गई और मास्टरजी को धन्यवाद देते हुए बोली कि इससे उसके पिताजी को बहुत राहत मिलेगी। मास्टरजी ने कहा पर इसके लिए उसे कुछ करना होगा। प्रगति प्रश्न मुद्रा में मास्टरजी की तरफ देखने लगी तो मास्टरजी ने उसे स्कूल के बाद अपने घर आने के लिए कहा और बोला कि वहीं पर सब समझा देंगे।

चलते चलते मास्टरजी ने प्रगति को आगाह किया कि इस बारे में किसी और को न बताये नहीं तो बाकी बच्चे भी फीस माफ़ करवाना चाहेंगे !! प्रगति समझ गई और किसी को न बताने का आश्वासन दे दिया। मास्टरजी क्लास में प्रगति पर ज्यादा ध्यान दे रहे थे और उसकी पढ़ाई की तारीफ़ भी कर रहे थे। प्रगति मास्टरजी से खुश थी। जब स्कूल की घंटी बजी तो मास्टरजी ने उसे आँख से इशारा किया और अपने घर को चल दिए। प्रगति भी अपना बस्ता घर में छोड़ कर और अपनी बहन को बता कर कि वह पढ़ने जा रही है, मास्टरजी के घर को चल दी।

मास्टरजी घर में अकेले ही थे, प्रगति को देख कर खुश हो गए और उसकी पढ़ाई की तारीफ़ करने लगे। प्रगति अपनी तारीफ़ सुन कर खुश हो गई और मुस्कराने लगी। मास्टरजी ने उसे सोफे पर अपने पास बैठने को कहा और उसके परिवार वालों के बारे में पूछने लगे। इधर उधर की बातों के बाद उन्होंने प्रगति को कुछ ठंडा पीने को दिया और कहा कि वह अगर इसी तरह मेहनत करती रहेगी और अपने मास्टरजी को खुश रखेगी तो उसके बहुत अच्छे नंबर आयेंगे और वह आगे चलकर बहुत नाम कमाएगी। प्रगति को यह सब अच्छा लग रहा था और उसने मास्टरजी को बोला कि वह उनकी उम्मीदों पर खरा उतरेगी !! मास्टरजी ने उसके सर पर हाथ रखा और प्यार से उसकी पीठ सहलाने लगे। मास्टरजी ने प्रगति को हाथ दिखाने को कहा और उसके हाथ अपनी गोदी में लेकर मानो उसका भविष्य देखने लगे। प्रगति बेचारी को क्या पता था कि उसका भविष्य अँधेरे की तरफ जा रहा है !

हाथ देखते देखते मास्टरजी अपनी ऊँगली जगह जगह पर उसकी हथेली के बीच में लगा रहे थे और उस भोली लड़की को उसके भविष्य के बारे में मन गढ़ंत बातें बता रहे थे। उसे राजकुमार सा वर मिलेगा, अमीर घर में शादी होगी वगैरह वगैरह !!

दोनों हाथ अच्छी तरह देखने के बाद उन्होंने उसकी बाहों को इस तरह देखना शुरू किया मानो वहां भी कोई रेखाएं हैं। उसके कुर्ते की बाजुओं को ऊपर कर दिया जिससे पूरी बाहों को पढ़ सकें। मास्टरजी थोड़ी थोड़ी देर में कुछ न कुछ ऐसा बोल देते जैसे कि वे कुछ पढ़ कर बोल रहे हों। अब उन्होंने प्रगति को अपनी टाँगें सोफे के ऊपर रखने को कहा और उसके तलवे पढ़ने लगे। यहाँ वहां उसके पांव और तलवों पर हाथ और ऊँगली का ज़ोर लगाने लगे जिससे प्रगति को गुदगुदी होने लगती। वह अजीब कौतूहल से अपना सुन्दर भविष्य सुन रही थी तथा गुदगुदी का मज़ा भी ले रही थी। जिस तरह मास्टरजी ने उसके कुर्ते की बाजुएँ ऊपर कर दी थी ठीक उसी प्रकार उन्होंने बिना हिचक के प्रगति की सलवार भी ऊपर को चढ़ा दी और रेखाएं ढूँढने लगे। उसके सुन्दर भविष्य की कोई न कोई बात वे बोलते जा रहे थे।

अचानक उन्होंने प्रगति से पूछा कि क्या वह वाकई में अपना और अपने परिवार वालों का संपूर्ण भविष्य जानना चाहती है? अगर हाँ, तो इसके लिए उसे अपनी पीठ और पेट दिखाने होंगे। प्रगति समझ नहीं पाई कि क्या करे तो मास्टरजी बोले कि गुरु तो पिता सामान होता है और पिता से शर्म कैसी? तो प्रगति मान गई और अपना कुर्ता ऊपर कर लिया। मास्टरजी ने कहा इस मुद्रा में तो तुम्हारे हाथ थक जायेंगे, बेहतर होगा कि कुर्ता उतार ही दो। यह कहते हुए उन्होंने उसका कुर्ता उतारना शुरू कर दिया। प्रगति कुछ कहती इससे पहले ही उसका कुर्ता उतर चुका था।

प्रगति ने कुर्ते के नीचे ब्रा पहन रखी थी। मास्टरजी ने उसे सोफे पर उल्टा लेटने को कहा और उसके पास आकर बैठ गए। उनके बैठने से सोफा उनकी तरफ झुक गया जिससे प्रगति सरक कर उनके समीप आ गई। उसका मुँह सोफे के अन्दर था और शर्म के मारे उसने अपनी आँखों को अपने हाथों से ढक लिया था। पर मास्टरजी ने उसकी पीठ पर अपनी एक ऊँगली से कोई नक्शा सा बनाया मानो कोई हिसाब कर रहे हों या कोई रेखाचित्र खींच रहे हों। ऐसा करते हुए वे बार बार ऊँगली को उसकी ब्रा के हुक के टकरा रहे थे मानो ब्रा का फीता उनको कोई बाधा पहुंचा रहा था। उन्होंने आखिर प्रगति को बोला कि वे एक मंत्र उसकी पीठ पर लिख रहे हैं जिससे उसके परिवार की सेहत अच्छी रहेगी और उसे भी लाभ होगा। यह कहते हुए उन्होंने उसकी ब्रा का हुक खोल दिया। प्रगति घबरा कर उठने लगी तो मास्टरजी ने उसे दबा दिया और बोले घबराने और शरमाने की कोई बात नहीं है। यहाँ पर तुम बिल्कुल सुरक्षित हो !!

उस गाँव में बहुत कम लोगों को पता था कि मास्टरजी, यहाँ आने से पहले, आंध्र प्रदेश के ओंगोल शहर में शिक्षक थे और वहां से उन्हें बच्चों के साथ यौन शोषण के आरोप के कारण निकाल दिया था। इस आरोप के कारण उनकी सगाई भी टूट गई थी और उनके घरवालों तथा दोस्तों ने उनसे मुँह मोड़ लिया था। अब वे अकेले रह गए थे। उन्होंने अपना प्रांत छोड़ कर तमिलनाडु में नौकरी कर ली थी जहाँ उनके पिछले जीवन के बारे में कोई नहीं जानता था। उन्हें यह भी पता था कि उन्हें होशियारी से काम करना होगा वरना न केवल नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा, हो सकता है जेल भी जाना पड़ जाये।

उन्होंने प्रगति की पीठ पर प्यार से हाथ फेरते हुए उसे सांत्वना दी कि वे उसकी मर्ज़ी के खिलाफ कुछ नहीं करेंगे। अचानक, मास्टरजी चोंकने का नाटक करते हुए बोले,"तुम्हारी पीठ पर यह सफ़ेद दाग कब से हैं?"

प्रगति ने पूछा,"कौन से दाग?"

तो मास्टरजी ने पीठ पर 2-3 जगह ऊँगली लगाते हुए बोला," यहाँ यहाँ पर !" फिर 1-2 जगह और बता दी।

प्रगति को यह नहीं पता था, बोली,"मुझे नहीं मालूम मास्टरजी, कैसे दाग हैं?"

मास्टरजी ने चिंता जताते हुए कहा,"यह तो आगे चल कर नुकसान कर सकते हैं और पूरे शरीर पर फैल सकते हैं। इनका इलाज करना होगा।"

प्रगति ने पूछा,"क्या करना होगा?"

मास्टरजी ने बोला,"घबराने की बात नहीं है। मेरे पास एक आयुर्वैदिक तेल है जिसको पूरे शरीर पर कुछ दिन लगाने से ठीक हो जायेगा। मेरे परिवार में भी 1-2 जनों को था। इस तेल से वे ठीक हो गए। अगर तुम चाहो तो मैं लगा दूं।"

प्रगति सोच में पड़ गई कि क्या करे। उसका असमंजस दूर करने के लिए मास्टरजी ने सुझाव दिया कि बेहतर होगा यह बात कम से कम लोगों को पता चले वरना लोग इसे छूत की बीमारी समझ कर तुम्हारे परिवार को गाँव से बाहर निकाल देंगे। फिर थोड़ी देर बाद खुद ही बोले कि तुम्हारा इलाज मैं यहाँ पर ही कर दूंगा। तुम अगले ७ दिनों तक स्कूल के बाद यहाँ आ जाना। यहीं पर तेल की मालिश कर दूंगा और उसके बाद स्नान करके अपने घर चले जाया करना। किसी को पता नहीं चलेगा और तुम्हारे यह दाग भी चले जायेंगे। क्या कहती हो?

बेचारी प्रगति क्या कहती। वह तो मास्टरजी के बुने जाल में फँस चुकी थी। घरवालों को गाँव से निकलवाने के डर से उसने हामी भर दी। मास्टरजी अन्दर ही अन्दर मुस्करा रहे थे।

मास्टरजी ने कहा, "नेक काम में देरी नहीं करनी चाहिए। अभी शुरू कर देते हैं !"

वे उठ कर अन्दर के कमरे में चले गए और वहां से एक गद्दा और दो चादर ले आये। गद्दे और एक चादर को फर्श पर बिछा दिया और दूसरी चादर प्रगति को देते हुए बोले,"मैं यहाँ से जाता हूँ, तुम कपड़े उतार कर इस गद्दे पर उल्टी लेट जाओ और अपने आप को इस चादर से ढक लो।" जब तुम तैयार हो जाओ तो मुझे बुला लेना। प्रगति को यह ठीक लगा और उसने सिर हिला कर हाँ कर दी। मास्टरजी फट से दूसरे कमरे में चले गए।

उनके जाने के थोड़ी देर बाद प्रगति ने इधर उधर देखा और सोफे से उठ खड़ी हुई। उसने कभी भी अपने कपड़े किसी और घर में नहीं उतारे थे इसलिए बहुत संकोच हो रहा था। पर क्या करती। धीरे धीरे हिम्मत करके कपड़े उतारने शुरू किये और सिर्फ चड्डी में गद्दे पर उल्टा लेट गई और अपने ऊपर चादर ले ली। थोड़ी देर बाद उसने मास्टरजी को आवाज़ दी कि वह तैयार है।

मास्टरजी अन्दर आ गये और गद्दे के पास एक तेल से भरी कटोरी रख दी। वे सिर्फ निकर पहन कर आये थे। कदाचित् तेल से अपने कपड़े ख़राब नहीं करना चाहते थे। उन्होंने धीरे से प्रगति के ऊपर रखी चादर सिर की तरफ से हटा कर उसे पीठ तक उघाड़ दिया। प्रगति पहली बार किसी आदमी के सामने इस तरह लेटी थी। उसे बहुत अटपटा लग रहा था। उसने अपने स्तन अपनी बाहों में अच्छी तरह अन्दर कर लिए और आँखें मींच लीं। उसका शरीर अकड़ सा रहा था और मांस पेशियाँ तनाव में थी। मास्टरजी ने सिर पर हाथ फेर कर उसे आराम से लेटने और शरीर को ढीला छोड़ने को कहा। प्रगति जितना कर सकती थी किया। पर वह एक अनजान सफ़र पर जा रही थी और उसके शरीर के एक एक हिस्से को एक अजीब अहसास हो रहा था।

मास्टरजी ने कुछ देर उसकी पीठ पर हाथ फेरा और फिर दोनों हाथों में तेल लेकर उसकी पीठ पर लगाने लगे। ठंडे तेल के स्पर्श से प्रगति को सिरहन सी हुई और उसके रोंगटे खड़े हो गए। पर मास्टरजी के हाथों ने रोंगटों को दबाते हुए मालिश करना शुरू कर दिया। शुरुआत उन्होंने कन्धों से की और प्रगति के कन्धों की अच्छे से गुन्दाई करने लगे । प्रगति की तनी हुई मांस पेशियाँ धीरे धीरे आराम महसूस करने लगीं और वह खुद भी थोड़ी निश्चिंत होने लगी। धीरे धीरे मास्टरजी ने कन्धों से नीचे आना शुरू किया। पीठ के बीचों बीच रीढ़ की हड्डी पर अपने अंगूठों से मसाज किया तो प्रगति को बहुत अच्छा लगा। अब वे पीठ के बीच से बाहर के तरफ हाथ चलाने लगे। पीठ के दोनों तरफ प्रगति की बाजुएँ थीं जिनसे उसने अपने स्तन छुपाए हुए थे। मास्टरजी ने धीरे से उसके दोनों बाजू थोड़ा खोल दिए जिस से वे उसकी पीठ के दोनों किनारों तक मालिश कर। सकें। मास्टरजी ने तेल की कटोरी अपने पास खींच ली और प्रगति की पीठ के ऊपर दोनों तरफ टांगें कर के उसके ऊपर आ गए। इस तरह वे पीठ पर अच्छी तरह जोर लगा कर मालिश कर सकते थे।

प्रगति के नितंब अभी भी चादर से ढके थे। मास्टरजी के हाथ रह रह कर प्रगति के स्तनोंके किनारों को छू जाते। पर वह इस तरह मालिश कर रहे थे मानो उन्हें प्रगति के शरीर से कुछ लेना देना न हो। उधर प्रगति को अपने स्तनों के आस पास के स्पर्श से रोमांच हो रहा था। वह आनंद ले रही थी। यही कारण था कि उसके बाजू स्वतः ही थोड़ा और खुल गए जिस से मास्टरजी के हाथों को और आज़ादी मिल गई। मास्टरजी पुराने पापी थे और इस तरह के इशारे भांप जाते थे सो उन्होंने अपनी मालिश का घेरा थोड़ा और बढ़ाया। दोनों तरफ उनके हाथ प्रगति के स्तनों को छूते और नीचे की तरफ नितंबों तक जाते।

प्रगति के इस छोटे से प्रोत्साहन से मास्टरजी में और जोश आया और वे उसकी पीठ पर ऊपर से नीचे तक और दायें से बाएं तक मालिश करने लगे। कभी कभी उनकी निकर प्रगति के चादर से ढके नितंब को छू जाती। प्रगति की तरफ से कोई आपत्ति नहीं होते देख मास्टरजी ने उसके नितंब को थोड़ा और ज़ोर से छूना शुरू कर दिया। जिस तरह एक पहलवान दंड पेलता है कुछ उसी तरह मास्टरजी प्रगति के ऊपर घुटनों के बल बैठ कर उसकी पीठ पेल रहे थे। कभी कभी उनका लिंग, जो कि इस प्रक्रिया के कारण उठ खड़ा था, निकर के अन्दर से ही प्रगति के चूतडों को छू जाता था। प्रगति आखिर जवानी की दहलीज पर कदम रखने वाली एक लड़की थी, उसके मन को न सही पर तन को तो यह सब अच्छा ही लग रहा था।

अब मास्टरजी ने पीठ से अपना ध्यान नीचे की तरफ किया। पर नितम्बों की तरफ जाने के बजाय वे प्रगति के पाँव की तरफ आ गए। उन्होंने प्रगति के ऊपरी शरीर को चादर से फिर से ढक दिया और पाँव की तरफ से घुटनों तक उघाड़ दिया। इससे प्रगति को दुगनी राहत मिली। एक तो ठंडी पीठ पर चादर की गरमाई और दूसरे उसे डर था कहीं मास्टरजी उसकी मजबूरी का फ़ायदा न उठा लें। मास्टरजी को मन ही मन वह एक अच्छा इंसान मानने लगी। उधर मास्टरजी, लम्बी दौड़ की तैयारी में लगे थे। वे नहीं चाहते थे कि प्रगति आज के बाद दोबारा उनके घर लौट कर ही न आये। इसलिए बहुत अहतियात से काम ले रहे थे। हालाँकि उनका लिंग बेकाबू हो रहा था। इसी लिए उन्होंने निकर के नीचे चड्डी के बजाय लंगोट बाँध रखी थी जिसमें उनके लिंग का विराट रूप समेटा हुआ था। वरना अब तक तो प्रगति को कभी का उसका कठोर स्पर्श हो गया होता।

मास्टरजी ने प्रगति के तलवों पर तेल लगा कर मालिश शुरू की तो प्रगति यकायक उठ गई और बोली, "यह आप क्या कर रहे हैं?"

ऐसा करने से प्रगति के नंगे स्तन मास्टरजी के सामने आ गए। हड़बड़ा कर उसने जल्दी से अपने आपको हाथों से ढक लिया। पर मास्टरजी को दर्शन तो हो ही गए थे। मास्टरजी के लिंग ने ज़ोर से अंगड़ाई ली और अपने आपको लंगोट की बंदिश से बाहर निकालने की बेकार कोशिश करने लगा। प्रगति के स्तन छोटे पर गोलाकार और गठे हुए थे। अभी इन्हें और विकसित होना था पर किसी मर्द को लालायित करने के लिए अभी भी काफी थे। इस छोटी सी झलक से ही मास्टरजी के मन में वासना का अपार तूफ़ान उठ गया पर वे दूध के जले हुए थे। इस छाछ को फूँक फूँक कर पीना चाहते थे। उन्होंने दर्शाया मानो कुछ देखा ही न हो। बोले, "प्रगति यह तुम्हारे उपचार की क्रिया है। इसमें तुम्हे संकोच नहीं होना चाहिए। तुम मुझे मास्टरजी के रूप में नहीं बल्कि एक चिकित्सक के रूप में देखो। एक ऐसा चिकित्सक जो कि तुम्हारा हितैषी और दोस्त है। अब लेट जाओ और मुझे मेरा काम करने दो वरना तुम्हें घर लौटने में देर हो जायेगी।"

प्रगति संकोच में थी फिर भी लेट गई। किसी के सामने नंगेपन का अहसास एक मानसिक लक्ष्मण रेखा की तरह होता है। बस एक बार ही इसकी सीमा पार करनी होती है। उसके बाद उस व्यक्ति के सामने नंगापन नंगापन नहीं लगता। प्रगति को अपने ऊपर शर्म आ रही थी कि अपनी बेवकूफी के कारण उसने अपने आप को मास्टरजी के सामने नंगा कर दिया था। यह तो अच्छा है, उसने सोचा, कि मास्टरजी एक अच्छे इंसान हैं और बुरी नज़र नहीं रखते। कोई और तो उसे दबोच देता। यह सोच कर प्रगति सहम गई।

उधर मास्टरजी ने तलवों के बाद प्रगति की दोनों टांगों की पिंडलियों को दबाना शुरू किया। प्रगति को लगा मानो उसकी सालों की थकान दूर हो रही थी। उसे ऐसा अनुभव कभी नहीं हुआ था। किसी ने कभी इस तरह उसकी सेवा नहीं की थी। वह मास्टरजी की कृतज्ञ हो रही थी। तो जब मास्टरजी ने उसकी टांगें थोड़ी और खोलने की कोशिश की तो प्रगति ने उनका सहयोग करते हुए अच्छी तरह अपनी टांगें खोल दीं। मास्टरजी अब पिंडलियों से प्रगति करते हुए घुटने और जांघों तक आ गए। अच्छे से तेल लगा कर हाथ चला रहे थे जिस से हाथ में खूब फिसलन हो और वे "गलती से" इधर उधर छू लें। अब प्रगति अपनी मालिश करवाने में पूरी तरह लीन थी। उसे बहुत मज़ा आ रहा था। प्रगति के ऊपर रखी चादर उसके नितंब तक उघड़ गई थी।

मास्टरजी ने अब देखा कि प्रगति पूरी नंगी नहीं है और उसने चड्डी पहन रखी है। मन ही मन उन्हें गुस्सा आया पर गुस्सा दबा कर प्यार से बोले,"तुम्हें यह चड्डी भी उतारनी होगी नहीं तो शरीर के ज़रूरी भाग इस उपचार से वंचित रह जायेंगे। बाद में तुम्हें पछतावा हो सकता है। लेकिन अगर तुम्हें संकोच है तो जैसा तुम ठीक समझो !!"

मास्टरजी ने अपना तीर छोड़ दिया था और वे आशा कर रहे थे कि प्रगति उनके जाल में फँस जायेगी। ऐसा ही हुआ।

प्रगति ने कहा," मास्टरजी, जैसा आप ठीक समझें !!"

तो मास्टरजी ने उसको चादर से ढक दिया और कमरे के बाहर यह कहते हुए चले गए कि वे बाथरूम हो कर आते हैं। तब तक प्रगति चड्डी उतार कर लेट जाये।

मास्टरजी को थोड़ा समय वैसे भी चाहिए था क्योंकि उनका भाला अपनी क़ैद से मुक्त होना चाहता था। इतनी देर से वह अपने आप को संभाले हुए था। मास्टरजी को डर था कहीं ज्वालामुखी लंगोट में ही न फट जाए। बाथरूम में जाकर मास्टरजी ने अपनी लंगोट खोली और अपने लिंग को आजाद किया। इससे उन्हें बहुत राहत मिली क्योंकि उनके लिंग में हल्का सा दर्द होने लगा था। उसके अन्दर का लावा बाहर आने को तड़प रहा था। इतनी कमसिन और प्यारी लड़की के इतना नजदीक होने के कारण उनका लंड अति उत्तेजित था और कुछ न कर पाने के कारण बहुत विवश महसूस कर रहा था। उसके लावे को छुटकारा चाहिए था। मास्टरजी ने इसी में भलाई समझी कि अपने लिंग को शांत करके ही प्रगति के पास जाना चाहिए। वरना करे कराये पर पानी फिर सकता है। यह सोच उन्होंने अपने लंड को तेल युक्त हाथ में लिया और प्रगति के स्तनों का स्मरण कर मैथुन करने लगे। लिंगराज तो पहले से ही उत्तेजित थे, थोड़ी सी देर ही में चरमोत्कर्ष को पा गए। मास्टरजी ने सोचा अब लंगोट की क्या ज़रुरत सो सिर्फ निकर ही पहन कर बाहर आ गए।

वहां प्रगति चड्डी उतार कर चादर के नीचे लेटी हुई थी। चड्डी में थोड़ा गीलापन था सो उसने चड्डी को गद्दे के नीचे छुपा दिया।

मास्टरजी ने जहाँ छोड़ा था वहीं से आगे मसाज शुरू किया। चादर को पाँव की तरफ से ऊपर लपेट कर प्रगति की जांघों तक उठा दिया और उसकी टांगें अच्छे से खोल दीं क्योंकि प्रगति अब नंगी थी, टांगें खुलने से उसे शर्म आ रही थी सो उसने अपनी टांगें थोड़ी सी बंद कर लीं। मास्टरजी ने कुछ नहीं कहा और पीछे से घुटनों और जांघों पर तेल लगाने लगे। उनके हाथ धीरे धीरे ऊपर की तरफ जाने लगे और चूतडों पर पहुँच गए। मास्टरजी प्रगति की टांगों के बीच वज्रासन में बैठ गए और प्रगति के घुटने से ऊपर की टांगों की मालिश करने लगे। चादर को उन्होंने उसकी पीठ तक उघाड़ दिया और वह उलटी, नंगी और असहाय उनके सामने लेटी हुई थी। मास्टरजी अपने जीवन में सिर्फ लड़कियां ही नहीं लड़कों का यौन शोषण भी कर चुके थे सो उन्हें गांड से बेहद प्यार था और उन्हें गांड मारने में मज़ा भी ज्यादा आता था। इस अवस्था में प्रगति की कुंवारी गांड को देख कर मास्टरजी की लार टपकने लगी। उनका मन कर रहा था इसी वक़्त वे प्रगति की गांड भेद दें पर अपने ही इरादे से मजबूर थे।

उनके हाथ प्रगति के चूतडों पर सरपट फिर रहे थे। रह रह कर उनकी उंगलियाँ चूतडों के पाट के बीच चली जातीं। जब ऐसा होता, प्रगति हिल हिल कर आपत्ति जताती। वज्रासन से थक कर मास्टरजी अपने घुटनों के बल बैठ गए और मालिश जारी रखी। उनकी उंगलियाँ प्रगति की योनि के द्वार तक दस्तक देने लगीं। ऐसे में भी प्रगति हिलडुल कर मनाही कर देती।

अब मास्टरजी ने प्रगति के ऊपर से पूरी चादर हटा दी और मालिश का वार पिंडलियों से लेकर पीठ और कन्धों तक करने लगे। जब वे आगे को जाते तो उनकी निकर प्रगति के चूतडों से छू जाती।

हालाँकि मास्टरजी एक बार लिंगराज को राहत दिला चुके थे और आम तौर पर उनका लंड एक दो घंटे के विश्राम के बाद ही दुबारा तैयार होता था, इसी विश्वास पर तो उन्होंने लंगोट उतार दी थी। पर आज आम हालात नहीं थे। लिंगराज के लिए कठिन समय था। उनके सामने एक अत्यंत कामुक और आकर्षक लड़की उनकी गिरफ्त में थी। वह नंगी और कई तरह से असहाय भी थी। उनके संयम की मानो परीक्षा हो रही थी। मन पर तो मास्टरजी ने काबू पा लिया पर तन का क्या करें। उनका लंड ताव में आ गया और उसके तैश के सामने बेचारी निकर का कपड़ा कमज़ोर पड़ रहा था। वह उसके बढ़ाव और उफ़ान को अपने में सीमित रखने में नाकामयाब हो रहा था। अतः मास्टरजी का लंड निकर को उठाता हुआ आसमान को सलामी दे रहा था। मास्टरजी के इरादों का विद्रोह करते हुए उन्हें मानो अंगूठा दिखा रहा था। यह तो अच्छा था कि प्रगति उलटी लेटी हुई थी वरना लिंगराज की यह हरकत उससे छिपी नहीं रह सकती थी। सावधानी बरतते बरतते भी उनकी लंड-युक्त निकर प्रगति की गांड को छूने लगी।

कुछ भी कहो, सामाजिक आपत्ति और विपदा एक बात है और प्रकृति के नियम और बात हैं। प्रगति या उसकी जगह कोई और लड़की, का सम्भोग के प्रति विरोध सामाजिक बंधनों के कारण होता है ना कि उसके तन-मन की आपत्ति के कारण। तन-मन से तो सबको सम्भोग का सुख अच्छा लगता है बशर्ते सम्भोग सम्मति के साथ किसी प्रियजन के साथ हो। यहाँ भी, हालाँकि प्रगति के संस्कार उसको ग्लानि का आभास करा रहे थे, पर मास्टरजी के लंड का उसके चूतड़ों पर हल्का हल्का स्पर्श, उसके शरीर को रोमांचित और मन को प्रफुल्लित कर रहा था। प्रगति की योनि से सहसा पानी बहने लगा।

यहाँ तक की कहानी आपको कैसी लगी मुझे ज़रूर बताइए।

इसके आगे क्या हुआ, अन्तर्वासना पर अगले अंक में पढिये !!

मुझे आपके विचार और टिप्पणी का इंतज़ार रहेगा।

प्रगति का अतीत- 2

मास्टरजी क्योंकि पीठ की मालिश में मग्न थे, प्रगति की योनि गीली होने का दृश्य नहीं देख पाए। उनकी नज़र पीठ की तरफ और ध्यान चूतड़ों से स्पर्श करती अपनी निकर पर था जिसके कारण उनका लिंग कठोर से कठोरतर होता जा रहा था। उन्हें याद नहीं आ रहा था कि इससे पहले उनका लंड इतनी जल्दी कब दुबारा सम्भोग के लिए तैयार हुआ हो !! उन्हें अपने आप पर गर्व होने लगा पर साथ ही चिंता भी होने लगी कि इस अवस्था से कैसे निपटें ? वे नहीं चाहते थे कि प्रगति को उनका विराट लंड दिख जाये। उन्हें डर था वह घबरा कर भाग न जाए। स्थिति पर काबू पाने के लिए वे प्रगति के ऊपर से हट गए और उसकी बगल में बैठ कर उसकी गर्दन और कन्धों को सहलाने लगे। उन्होंने प्रगति के निचले शरीर पर चादर भी उढ़ा थी। प्रगति के कामोत्तेजन को जैसे अचानक ब्रेक लग गया। उसे थोड़ा बुरा लगा पर राहत भी महसूस की। उसे अपने ऊपर गुस्सा भी आ रहा था कि अपने ऊपर संयम क्यों नहीं रख पा रही है। उसे लगा कि मास्टरजी क्या सोचेंगे अगर उन्हें पता लगा कि उसके शरीर में कैसी कशिश चल रही है। वे तो उसका इलाज करने में लगे हैं और वह किसी और प्रवाह में बह रही है !

अपने ऊपर प्रगति को शर्म आने लगी और मन ही मन मास्टरजी का धन्यवाद किया कि वे उसके ऊपर से उठ गए और उसको ढक दिया। अब उन्हें प्रगति की योनि की अवस्था का पता नहीं चलेगा, जो कि सम्भोग के लिए तत्पर हो रही थी।

थोड़ी देर में मास्टरजी का लिंग मायूस हो कर सिकुड़ गया और प्रगति की योनि भी बुझ सी गई। दोनों को इससे राहत मिली। प्रगति नहीं चाहती थी कि मास्टरजी को उसकी कामोत्तेजना के बारे में पता चले। कहीं वे उसे बुरी और बदचलन लड़की न समझने लगें। उधर मास्टरजी नहीं चाहते थे कि प्रगति उनके लिंग के विराट रूप को देख ले। उन्हें डर था प्रगति डर के मारे भाग ही न जाए। वे प्रगति के साथ अपने रिश्ते को धीरे धीरे विकसित करना चाहते थे और एक लम्बा सम्बन्ध बनाना चाहते थे।

मास्टरजी को जब यकीन हो गया कि उनका लंड नियंत्रण में आ गया है और उनकी निकर के आकार को नहीं ललकार रहा तो वे उठ खड़े हुए और प्रगति को चित लेट जाने का आदेश दे कर कमरे से बाहर चले गए। प्रगति एक आज्ञाकारी शिष्या कि भांति चादर के नीचे ही करवट बदल कर सीधी हो गई। हालाँकि वह चादर के नीचे थी, फिर भी सहसा उसने अपने हाथों से अपने स्तन ढक लिए ताकि उसके वक्ष की रूपरेखा चादर पर न खिंचे।

वहां मास्टरजी ने गुसलखाने में जाकर अपने नटखट लंड को नियंत्रण में लाने के लिए एक बार फिर मामला हाथ में लिया और हस्त मैथुन करने लगे। वे दुबारा अपने आप को ऐसी स्थिति में नहीं लाना चाहते थे जहाँ उन्हें प्रगति से हाथ धोना पड़े। कुछ देर के प्रयास के बाद मास्टरजी का लंड एक बार फिर लावा उगलने लगा, पर इस बार पहले की भांति का ज्वालामुखी नहीं था। एक फुलझड़ी के मानिंद था। मास्टरजी को इस राहत से तसल्ली मिली और वे एक नए भरोसे के साथ प्रगति के पास आ गए। उनका लिंग एक भीगी बिल्ली की तरह असहाय सा निकर में लटक रहा था और गवाएँ हुए दो मौकों का अफ़सोस कर रहा था।

प्रगति के चित्त लेटने से एक समस्या यह खड़ी हुई कि अब दोनों एक दूसरे को देख सकते थे। पर दोनों ही एक दूसरे से आँख नहीं मिलाना चाहते थे क्योंकि दोनों के मन में ग्लानि भाव था।एक अजीब सी चुप्पी का वातावरण छा गया था। इतने में प्रगति ने अपने हाथ चादर से बाहर निकाल कर अपनी आँखों पर रख लिए और आँखें मूँद लीं। उसे शायद ज्यादा शर्म महसूस हो रही थी क्योंकि नंगी तो वह थी !!! उसकी इस हरकत से दो फायदे हुए। एक तो दोनों की आँखों का संपर्क टूट गया और दूसरे प्रगति के वक्ष स्थल से उसके हाथों का बचाव चला गया। प्रगति की साँसें उसकी छाती को ऊपर नीचे कर रहीं थीं जिस से उसके स्तनों के ऊपर रखी चादर ऊपर नीचे खिसक रही थी। इस चादर की रगड़ से उसकी चूचियों में गुदगुदी हो रही थी और वे उभर कर खड़ी हो गई थीं। उसके वक्ष की रूप रेखा अब चादर पर स्पष्ट दिखाई दे रही थी। मास्टरजी को यह दृश्य बहुत अच्छा लगा।

मास्टरजी ने अपने काम पांव की तरफ से आरम्भ किया। वे प्रगति की छाती पर पड़ी चादर को नहीं छेड़ना चाहते थे। उन्होंने प्रगति के पांव से लेकर जांघों तक की चादर उघाड़ दी और तेल की मालिश करने लगे। तलवे तो पहले ही हो चुके थे फिर भी उन्होंने तलवों पर कुछ समय बिताया क्योंकि वे प्रगति को गुदगुदा कर उसकी उत्तेजना को कायम रखना चाहते थे। तलवों के विभिन्न हिस्सों का संपर्क शरीर के विभिन्न अंगों से होता है और सही जगह दबाव डालने से कामेच्छा जागृत होती है। इसी आशा में वे उसके तलवों का मसाज कर रहे थे। प्रगति को इसमें मज़ा आ रहा था। कुछ देर पहले उसकी कामुक भावनाओं पर लगा अंकुश मानो ढीला पड़ रहा था। मास्टरजी की उंगलियाँ उसके शरीर में फिर से बिजली का करंट डाल रही थीं।

धीरे धीरे मास्टरजी ने तलवों को छोड़ कर घुटनों के नीचे तक की टांगों को तेल लगाना शुरू किया। यह करने के लिए उन्होंने प्रगति के घुटने ऊपर की तरफ मोड़ दिए। चादर पहले ही जाँघों तक उघड़ी हुई थी। घुटने मोड़ने से प्रगति की योनि प्रत्यक्ष हो गई। प्रगति ने तुंरत अपनी टाँगें जोड़ लीं। पर इस से क्या होता है !? उसकी योनि तो फिर भी मास्टरजी को दिख रही थी हालाँकि उसके कपाट बिलकुल बंद थे। मास्टरजी ने खिसक कर अपने आप को प्रगति के और समीप कर लिया जिस से उनके हाथ प्रगति की जांघों तक पहुँच सकें।

प्रगति की साँसें और तेज़ हो गईं और उसने अपने दोनों हाथ अपनी आँखों पर और कस कर बांध लिए। मास्टरजी ने प्रगति के घुटनों से लेकर उसकी जांघों तक की मालिश शुरू की। वे उसकी जांघों की सब तरफ से मालिश कर रहे थे और उनके अंगूठे प्रगति की योनि के बहुत नज़दीक तक भ्रमण कर रहे थे। प्रगति को बहुत गुदगुदी हो रही थी और वह अपनी टाँगें इधर उधर हिलाने लगी। ऐसा करने से मास्टरजी के अंगूठों को और आज़ादी का मौका मिल गया और वे उसकी योनि के द्वार तक पहुँचने लगे। प्रगति ने शर्म से अपनी टांगें सीधी कर लीं और आधी सी करवट ले कर रुक गई। उसने अपनी टाँगें भी जोर से भींच लीं। मास्टरजी ने उसकी इस प्रतिक्रिया का सम्मान किया और कुछ देर तक कुछ नहीं किया। प्रगति की प्रतिक्रिया उसके कुंवारेपन और अच्छे संस्कारों का प्रतीक था और यह मास्टरजी को अच्छा लगा। उनकी नज़र में जो लड़की लज्जा नहीं करती उसके साथ सम्भोग में वह मज़ा नहीं आता। वे तो एक कमसिन, आकर्षक, गरीब, असहाय और कुंवारी लड़की का सेवन करने की तैयारी कर रहे थे और उन्हें लगता था वे मंजिल के काफी नज़दीक पहुँच गए हैं।

थोड़े विराम के बाद उन्होंने प्रगति को करवट से सीधा किया और बिना टांगें मोड़े उसकी मालिश करने लगे। उन्हें शायद नहीं पता था कि प्रगति की योनि फिर से गीली हो चली थी और इसीलिए प्रगति ने इसे छुपाने की कोशिश की थी। प्रगति ने अपने होंट दांतों में दबा रखे थे और वह किसी तरह अपने आप को क़ाबू में रख रही थी जिससे उसके मुँह से कोई ऐसी आवाज़ न निकल जाए जिससे उसको मिल रहे असीम आनंद का भेद खुल जाए। मास्टरजी ने स्थिति का समझते हुए प्रगति की जांघों पर से ध्यान हटाया। उन्होंने उसके पेट पर से चादर को ऊपर लपेट दिया और उसके पतले पेट पर तेल लगाने लगे। प्रगति को लग रहा था मानो उसका पूरा शरीर ही कामाग्नि में लिप्त हो गया हो। मास्टरजी जहाँ भी हाथ लगायें उसे कामुकता का आभास हो। यह आभास उसकी योनि को तर बतर करने में कसर नहीं छोड़ रहा था और प्रगति को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे !! उसे लगा थोड़ी ही देर में उसकी योनि के नीचे बिछी चादर गीली हो जायेगी। मास्टरजी को शायद उसकी इस दशा का भ्रम था। कुछ तो वे उसकी योनि देख भी चुके थे और कुछ वे प्रगति के शारीरिक संकेत भी पढ़ रहे थे। उन्हें पुराने अनुभव काम आ रहे थे।

प्रगति के पेट पर हाथ फेरने में मास्टरजी को बहुत मज़ा आ रहा था। इतनी पतली कमर और नरम त्वचा उनके हाथों को सुख दे रही थी। वे नाभि में अंगूठे को घुमाते और पेट के पूरे इलाके का निरीक्षण करते। उनकी आँखों के सामने प्रगति की योनि के इर्द गिर्द थोड़े बहुत घुंघराले बाल थे जो योनि को छुपाने की नाकाम कोशिश कर रहे थे। प्रगति ने अपनी टाँगें कस कर जोड़ रखी थीं जिससे योनि ठीक से नहीं दिख रही थी पर फिर भी मास्टरजी की नज़रों के सामने थी और उनकी नज़रें वहां से नहीं हट रही थीं।

अब मास्टरजी ने प्रगति की छाती पर से चादर हटाते हुए उसके सिर पर डाल दी। अब वह कुछ नहीं देख सकती थी और उसके हाथ भी चादर के नीचे क़ैद हो गए थे। मास्टरजी को यह व्यवस्था अच्छी लगी। इसकी उन्होंने योजना नहीं बनाईं थी। यह स्वतः ही हो गया था। मास्टरजी को लगा भगवान् भी उसका साथ दे रहे हैं।

मास्टरजी ने पहली बार प्रगति के स्तनों को तसल्ली से देखा। यद्यपि वे इतने बड़े नहीं थे पर मनमोहक गोलनुमा आकार था और उनके उभार में एक आत्मविश्वास झलकता था। उनके शिखर पर कथ्थई रंग के सिंघासन पर गौरवमई चूचियां विराजमान थीं जो सिर उठाए आसमान को चुनौती दे रही थीं।

प्रगति की आँखें तो ढकी थीं पर उसे अहसास था कि मास्टरजी उसके नंगे शरीर को घूर रहे होंगे। यह सोच कर उसकी साँसें और तेज़ हो रही थीं उसका वक्ष स्थल खूब ज्वार भाटे ले रहा था। मास्टरजी का मन तो उन चूचियों को मूंह में लेकर चूसने का कर रहा था पर आज मानो उनके लिए व्रत का दिन था। तेल हाथों में लगाकर उन्होंने प्रगति के स्तनों को पहली बार छुआ। इस बार उन्हें बिजली का झटका सा लगा। इतने सुडौल, गठीले और नरम वक्ष उन्होंने अभी तक नहीं छुए थे। उनका स्पर्श पा कर स्तन और भी कड़क हो गए और चूचियां तन कर और कठोर हो गईं।

जब उनकी हथेली चूचियों पर से गुज़रती तो वे दबती नहीं बल्कि स्वाभिमान में उठी रहतीं। मास्टरजी को स्वर्ग का अनुभव हो रहा था। इसी दौरान उन्हें एक और अनुभव हुआ जिसने उन्हें चौंका दिया, उनका लिंग अपनी मायूसी त्याग कर फिर से अंगडाई लेने की चेष्टा कर रहा था। मास्टरजी को अत्यंत अचरज हुआ। उन्होंने सोचा था कि दो बार के विस्फोट के बाद कम से कम १२ घंटे तक तो वह शांत रहेगा। पर आज कुछ और ही बात थी। उन्हें अपनी मर्दानगी पर गरूर होने लगा। चिंता इसलिए नहीं हुई क्योंकि प्रगति का सिर ढका हुआ था और वह कुछ नहीं देख सकती थी। मास्टरजी ने अपने लिंग को निकर में ही ठीक से व्यवस्थित किया जिस से उसके विकास में कोई बाधा न आये।

जब तक प्रगति की आँखें बंद थीं उन्हें अपने लंड की उजड्ड हरकत से कोई आपत्ति नहीं थी। वे एक बार फिर प्रगति के पेट के ऊपर दोनों तरफ अपनी टांगें करके बैठ गए और उसकी नाभि से लेकर कन्धों तक मसाज करने लगे। इसमें उन्हें बहुत आनंद आ रहा था, खासकर जब उनके हाथ बोबों के ऊपर से जाते थे। कुछ देर बाद मास्टरजी ने अपने आप को खिसका कर नीचे की ओर कर लिया और उसके घुटनों के करीब आसन जमा लिया। अपना वज़न उन्होंने अपनी टांगों पर ही रखा जिससे प्रगति को थकान या तकलीफ़ न हो।

इधर प्रगति को यह आँख मिचोली का खेल भा रहा था। उसे पता नहीं चलता था कि आगे क्या होने वाला है। यह रहस्य उसके आनंद को बढ़ा रहा था। मास्टरजी के मसाज से उसकी योनि में तीव्र चंचलता पनप रही थी और वह किसी तरह योनि की कामना पूरी करना चाहती थी। पर लज्जा और मास्टरजी के डर से लाचार थी। उस भोली को यह समझ नहीं आ रहा था कि मास्टरजी से डरने की तो कोई बात ही नहीं है। वे तो खुद इसी इच्छा पूर्ति के प्रयास में लगे हैं। लज्जा का अब सवाल कहाँ उठता है? वह इस से ज्यादा नंगी थोड़े ही हो सकती है, भला ! पर उसका विवेक तो वासना के भंवर में नष्ट हो गया था।

मास्टरजी को अपना नया आसन बहुत लाभदायक लगा। यहाँ से वे पैरों को छोड़ कर प्रगति के पूरे जिस्म को निहार भी सकते थे और ज़रुरत पड़ने पर छू भी सकते थे। उन्होंने जानबूझ कर अभी तक प्रगति के चरम गुप्तांगों पर हाथ नहीं लगाया था। यह सुख वे अंत में लेना चाहते थे। अब वे प्रगति की योनि और गुदा का मसाज करने वाले थे। इस विचार के आने से उनके लंड में फिर से रक्त भरने लगा और वह तीसरी बार उदयमान होने लगा।

मास्टरजी ने मसाज की दो क्रियाएँ शुरू कीं। एक तो वे अपने हाथ प्रगति की जाँघों से लेकर ऊपर कन्धों तक ले जाते और वापस आने पर अपने अंगूठों से उसकी योनि के चारों तरफ मसाज करते। पहली बार जब उन्होंने ऐसा किया तो प्रगति उछल पड़ी। उसकी योनि को आज तक किसी और ने नहीं छुआ था। अचानक मास्टरजी के हाथ लगने से उसको न केवल अत्यंत गुदगुदी हुई, उसका संतुलन और संयम भी लड़खड़ा गया। उसके उछलने से हालाँकि उसके चेहरे से चादर नहीं हटी पर मास्टरजी का तना हुआ लंड ज़रूर उसकी योनि और नाभि को रगड़ गया। यद्यपि लंड निकर के अन्दर था फिर भी उसका संपर्क प्रगति को निश्चित रूप से पता चला होगा।

मास्टरजी ने प्रगति से पूछा,"क्या हुआ प्रगति? मुझ से कोई गलती हुई क्या ?" प्रगति ने जवाब दिया,"नहीं मास्टरजी, मैं चौंक गई थी। आप इलाज जारी रखिये !"

यह कह कर वह फिर से लेट गई इस बार उसकी टांगें अपने आप थोड़ी खुल गई थीं। मास्टरजी बहुत खुश हुए। उन्हें पता था कि प्रगति पर काम वासना ने कब्ज़ा कर लिया है। वह अब उनके हाथों की कठपुतली बन कर रह गई है।

अब मास्टरजी निश्चिंत हो कर प्रगति की नाभि से लेकर उसकी योनि तक का मसाज करने लगे। उन्होंने धीरे धीरे योनि के बाहरी होटों को सहलाना शुरू किया और फिर अंदरूनी छोटे होंट सहलाने लगे। योनि का गीलापन उनको मसाज में मदद कर रहा था। प्रगति की देह किसी लहर की तरह झूमने लगी थी। थोड़ी थोड़ी देर में उसकी काया सिहर उठती और उसका जिस्म डोल जाता। अब मास्टरजी ने अपनी एक उंगली प्रगति की चूत में थोड़ी सी सरकाई। प्रगति के मुँह से एक आह निकल गई। वह कुछ भी आवाज़ नहीं निकालना चाहती थी फिर भी निकल गई। मास्टरजी योनिद्वार पर और उसके आधा इंच अन्दर तक मसाज करने लगे। प्रगति एक नियमित ढंग से ऊपर नीचे होने लगी। प्रकृति अपनी लीला दिखा रही थी। काम वासना के सामने किसी की नहीं चलती तो प्रगति तो निरी अबोध बालिका थी।

मास्टरजी अब एक उंगली लगभग पूरी अन्दर बाहर करने लगे। उनकी उंगली किसी हद तक ही अन्दर जा रही थी। प्रगति के कुंवारेपन का सबूत, उसकी झिल्ली, उंगली के प्रवेश का विरोध कर रही थी। मास्टरजी को इस अहसास से अत्यधिक संतोष हुआ। अगर प्रगति कुंवारी नहीं होती तो मास्टरजी को ज़रूर दुःख होता। अब तो उनके हर्ष की सीमा नहीं थी। वे एक कुंवारी योनि का उदघाटन करेंगे इस ख्याल से उनके लंड ने एक ज़ोरदार सलामी दी और जा कर मास्टरजी के पेट से सट गया।

मास्टरजी ने हाथ बढा कर सोफे पर से एक तकिया खींच लिया और प्रगति के चूतड़ों के नीचे रख दिया। इस से प्रगति की गांड भी अब मास्टरजी के अधीन हो गई। उन्होंने दोनों हाथों में तेल लगाकर एक हाथ से चूतड़ों पर मालिश शुरू की तथा दूसरे से उसकी चूत की। वे इस बात का ध्यान रख रहे थे कि उनकी उंगली से गलती से प्रगति की झिल्ली न भिद जाए। यह सौभाग्य तो वे अपने लंड को देना चाहते थे। इसलिए चूत की मालिश बहुत कोमलता से कर रहे थे। उन्होंने अपनी उंगलियाँ हौले हौले योनि के ऊपर स्थित मटर के पास ले गए जो कि स्त्री की कामाग्नि का सबसे संवेदनशील अंग होता है। उसे छूते ही प्रगति के मुँह से एक मादक चीख निकल गई। उसका अंग प्रत्यंग हिल गया और योनि में से २-३ बूँद द्रव्य रिस गया।

मास्टरजी ने उसके योनि-रस में उंगलियाँ भिगो लीं और उन गीली उँगलियों से उसकी गांड के छेद की परिक्रमा करने लगे। एक हाथ उनका मटर के दाने के आस पास घूम रहा था। प्रगति आनंद के हिल्लोरे ले रही थी। अब उसकी देह समुद्र की मौजों की तरह लहरें ले रही थी उसका ध्यान इस दुनिया से हट कर मानो ईश्वर में लीन हो गया था। अब उसे किसी की परवाह नहीं थी। वह बेशर्मी से मास्टरजी का सहयोग करने लगी थी और निडर हो कर आवाजें भी निकाल रही थी। उसकी योनि में सम्भोग की तीव्र ज्वाला भड़क उठी थी। उसका तड़पता शरीर भरपूर शक्ति के साथ मास्टरजी की उंगली को चूत में डलवाने के प्रयास में लगा था। और अगर मास्टरजी सावधान नहीं होते तो प्रगति मास्टरजी की उंगली से ही अपने कुंवारेपन को लुटवाने में कामयाब हो जाती।

मास्टरजी ने अवसर का लाभ उठाते हुए एक गीली उंगली प्रगति की गांड के छेद में दबा दी। जैसे ही उन्होंने दबाव डाला उनके दरवाज़े की घंटी बज गई। वे एकदम चौंक गए। उन्हें लगा उनके दरवाज़े की घंटी का बटन प्रगति की गांड में कैसे आ गया !! उधर प्रगति भी हड़बड़ा कर उठ गई और अपने कपड़े ढूँढने लगी। उसे अचानक शर्म सी आने लगी। मास्टरजी ने उसे इशारे से दूसरे कमरे में जाने को कहा और खुद कपड़े पहनते हुए कमरे को सँवारने लगे। इस दौरान उनका लंड भी मुरझा गया था जो कि अच्छा हुआ। जब कमरा ठीक हो गया वे दरवाज़े की तरफ जाने लगे पर कुछ सोचकर रुक गए और प्रगति के पास जा कर उसे पीछे के दरवाज़े से निकाल कर घर जाने को कह दिया। उन्होंने उसके कान में कल फिर इसी समय आने को भी कह दिया। प्रगति ने सर हिला कर हामी भर दी और चुपचाप घर को चल दी।

वे नहीं जानते थे कौन आया है और कितनी देर रुकेगा।

इसके आगे क्या हुआ, अन्तर्वासना में पढ़िये अगले अंक में !!!

आपको यहाँ तक की कहानी कैसी लगी मुझे ज़रूर बताइए। आपके पत्रों और सुझावों का मुझे इंतज़ार रहेगा, ख़ास तौर से महिला पाठकों का क्योंकि लड़कियों के दृष्टिकोण का मुझे आभास नहीं है। उनके परामर्श मेरे लिए ज़रूरी हैं।

प्रगति का अतीत- 3

प्रगति का अतीत- 2 से आगे



मास्टरजी के घर से चोरों की तरह निकल कर घर जाते समय प्रगति का दिल जोरों से धड़क रहा था। उसके मन में ग्लानि-भाव था। साथ ही साथ उसे ऐसा लग रहा था मानो उसने कोई चीज़ हासिल कर ली हो। मास्टरजी को वशीभूत करने का उसे गर्व सा हो रहा था। अपने जिस्म के कई अंगों का अहसास उसे नए सिरे से होने लगा था। उसे नहीं पता था कि उसका शरीर उसे इतना सुख दे सकता है। पर मन में चोर होने के कारण वह वह भयभीत सी घर की ओर जल्दी जल्दी कदमों से जा रही थी।

जैसे किसी भूखे भेड़िये के मुँह से शिकार चुरा लिया हो, मास्टरजी गुस्से और निराशा से भरे हुए दरवाज़े की तरफ बढ़े। उन्होंने सोच लिया था जो भी होगा, उसकी ख़ैर नहीं है।

"अरे भई, भरी दोपहरी में कौन आया है?" मास्टरजी चिल्लाये।

जवाब का इंतज़ार किये बिना उन्होंने दरवाजा खोल दिया और अनचाहे महमान का अनादर सहित स्वागत करने को तैयार हो गए। पर दरवाज़े पर प्रगति की छोटी बहन अंजलि को देखते ही उनका गुस्सा और चिड़चिड़ापन काफूर हो गया। अंजलि हांफ रही थी।

"अरे बेटा, तुम? कैसे आना हुआ?"

"अन्दर आओ। सब ठीक तो है ना?" मास्टरजी चिंतित हुए। उन्हें डर था कहीं उनका भांडा तो नहीं फूट गया....

अंजलि ने हाँफते हाँफते कहा,"मास्टरजी, पिताजी अचानक घर जल्दी आ गए। दीदी को घर में ना पा कर गुस्सा हो रहे हैं।"

मास्टरजी,"फिर क्या हुआ?"

अंजलि,"मैंने कह दिया कि सहेली के साथ पढ़ने गई है, आती ही होगी।"

मास्टरजी,"फिर?"

अंजलि,"पिताजी ने पूछा कौन सहेली? तो मैंने कहा मास्टरजी ने कमज़ोर बच्चों के लिए ट्यूशन लगाई है वहीं गई है अपनी सहेलियों के साथ।"

अंजलि,"मैंने सोचा आपको बता दूं, हो सकता है पिताजी यहाँ पता करने आ जाएँ।"

मास्टरजी,"शाबाश बेटा, बहुत अच्छा किया !! तुम तो बहुत समझदार निकलीं। आओ तुम्हें मिठाई खिलाते हैं।" यह कहते हुए मास्टरजी अंजलि का हाथ खींच कर अन्दर ले जाने लगे।

अंजलि,"नहीं मास्टरजी, मिठाई अभी नहीं। मैं जल्दी में हूँ। दीदी कहाँ है?" अंजलि की नज़रें प्रगति को घर में ढूंढ रही थीं।

मास्टरजी,"वह तो अभी अभी घर गई है।"

अंजलि," कब? मैंने तो रास्ते में नहीं देखा..."

मास्टरजी,"हो सकता है उसने कोई और रास्ता लिया हो। जाने दो। तुम जल्दी से एक लड्डू खा लो।"

मास्टरजी ने अंजलि से पूछा,"तुम चाहती हो ना कि दीदी के अच्छे नंबर आयें? हैं ना ?"

अंजलि,"हाँ मास्टरजी। क्यों? "

मास्टरजी,"मैं तुम्हारी दीदी के लिए अलग से क्लास ले रहा हूँ। वह बहुत होनहार है। क्लास में फर्स्ट आएगी।"

अंजलि,"अच्छा?"

मास्टरजी,"हाँ। पर बाकी लोगों को पता चलेगा तो मुश्किल होगी, है ना ?"

अंजलि ने सिर हिला कर हामी भरी।

मास्टरजी,"तुम तो बहुत समझदार और प्यारी लड़की हो। घर में किसी को नहीं बताना कि दीदी यहाँ पर पढ़ने आती है। माँ और पिताजी को भी नहीं.... ठीक है?"

अंजलि ने फिर सिर हिला दिया.....

मास्टरजी,"और हाँ, प्रगति को बोलना कल 11 बजे ज़रूर आ जाये। ठीक है? भूलोगी तो नहीं, ना ?"

अंजलि,"ठीक है। बता दूँगी...। "

मास्टरजी,"मेरी अच्छी बच्ची !! बाद में मैं तुम्हें भी अलग से पढ़ाया करूंगा।" यह कहते कहते मास्टरजी अपनी किस्मत पर रश्क कर रहे थे। प्रगति के बाद उन्हें अंजलि के साथ खिलवाड़ का मौक़ा मिलेगा, यह सोच कर उनका मन प्रफुल्लित हो रहा था।

मास्टरजी,"तुम जल्दी से एक लड्डू खा लो !"

"बाद में खाऊँगी" बोलते हुए वह दौड़ गई।

अगले दिन मास्टरजी 11 बजे का बेचैनी से इंतज़ार रहे थे। सुबह से ही उनका धैर्य कम हो रहा था। रह रह कर वे घड़ी की सूइयां देख रहे थे और उनकी धीमी चाल मास्टरजी को विचलित कर रही थी। स्कूल की छुट्टी थी इसीलिये उन्होंने अंजलि को ख़ास तौर से बोला था कि प्रगति को आने के लिए बता दे। कहीं वह छुट्टी समझ कर छुट्टी न कर दे।

वे जानते थे 10 से 4 बजे के बीच उसके माँ बाप दोनों ही काम पर होते हैं। और वे इस समय का पूरा पूरा लाभ उठाना चाहते थे। उन्होंने हल्का नाश्ता किया और पेट को हल्का ही रखा। इस बार उन्होंने तेल मालिश करने की और बाद में रति-क्रिया करने की ठीक से तैयारी कर ली। कमरे को साफ़ करके खूब सारी अगरबत्तियां जला दीं, ज़मीन पर गद्दा लगा कर एक साफ़ चादर उस पर बिछा दी। तेल को हल्का सा गर्म कर के दो कटोरियों में रख लिया। एक कटोरी सिरहाने की तरफ और एक पायदान की तरफ रख ली जिससे उसे सरकाना ना पड़े। साढ़े १० बजे वह नहा धो कर ताज़ा हो गए और साफ़ कुर्ता और लुंगी पहन ली। उन्होंने जान बूझ कर चड्डी नहीं पहनी।

उधर प्रगति को जब अंजलि ने मास्टरजी का संदेशा दिया तो वह खुश भी हुई और उसके हृदय में एक अजीब सी कूक भी उठी। उसे यह तो पता चल गया था कि मास्टरजी उसे क्या "पढ़ाने" वाले हैं। उसके गुप्तांगों में कल के अहसासों के स्मरण से एक बिजली सी लहर गई। उसने अपने हाव भाव पर काबू रखते हुए अंजलि को ऐसे दर्शाया मानो कोई ख़ास बात नहीं है। बोली,"ठीक है.... देखती हूँ ...। अगर घर का काम पूरा हो गया तो चली जाऊंगी।"

अंजलि," दीदी तुम काम की चिंता मत करो। छुटकी और मैं हैं ना ...। हम सब संभाल लेंगे। तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो।"

उस बेचारी को क्या पता था कि प्रगति को "काम" की ही चिंता तो सता रही थी। छुटकी, जिसका नाम दीप्ति था, अंजलि से डेढ़ साल छोटी थी। तीनों बहनें मिल कर घर का काम संभालती थीं और माँ बाप रोज़गार जुटाने में रहते थे।

प्रगति,"तुम बाद में माँ बापू से शिकायत तो नहीं करोगे?"

अंजलि,"हम उन्हें बताएँगे भी नहीं कि तुम मास्टरजी के पास पढ़ने गई हो। हमें मालूम है बापू नाराज़ होंगे...। यह हमारा राज़ रहेगा, ठीक है !!"

प्रगति को अपना मार्ग साफ़ होता दिखा। बोली,"ठीक है, अगर तुम कहती हो तो चली जाती हूँ। "

"पर तुम्हें भी हमारा एक काम करना होगा......" अंजलि ने पासा फेंका।

"क्या ?"

"मास्टरजी मुझे मिठाई देने वाले थे पर पिताजी के डर से मैंने नहीं ली। वापस आते वक़्त उन से मिठाई लेती आना।"

"ओह, बस इतनी सी बात.....। ठीक है, ले आऊँगी।" तुम ज़रा घर को और माँ बापू को संभाल लेना।"

दोनों बहनों ने साज़िश सी रच ली। छुटकी को कुछ नहीं मालूम था। दोनों ने उसे अँधेरे में रखना ही उचित समझा। बहुत बातूनी थी और उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता था।

प्रगति अब तैयारी में लग गई। घर का ज़रूरी काम जल्दी से निपटाने के बाद नहाने गई। उसके मन में संगीत फूट रहा था। वह नहाते वक़्त गाने गुनगुना रही थी। अपने जिस्म और गुप्तांगों को अच्छे से रगड़ कर साफ़ किया, बाल धोये और फिर साफ़ कपड़े पहने। उसे मालूम था मालिश होने वाली है सो चोली और चड्डी के ऊपर एक ढीला ब्लाऊज और स्कर्ट पहन ली। अहतियात के तौर पर स्कूल का बस्ता भी साथ ले लिया जब कि वह जानती थी इसकी कोई आवश्यकता नहीं होगी।

ठीक पौने ग्यारह बजे वह मास्टरजी के घर के लिए चल दी।

प्रगति सुनिश्चित समय पर मास्टरजी के घर पहुँच गई। वे उसकी राह तो बाट ही रहे थे सो वह घंटी बजाती उसके पहले ही उन्होंने दरवाजा खोल दिया। एक किशोर लड़के की भांति, जो कि पहली बार किसी लड़की को मिल रहा हो, मास्टरजी ने फ़ुर्ती से प्रगति को बांह से पकड़ कर घर के अन्दर खींच लिया। दरवाजा बंद करने से पहले उन्होंने बाहर इधर उधर झाँक के यकीन किया कि किसी ने उसे अन्दर आते हुए तो नहीं देखा। जब कोई नहीं दिखा तो उन्होंने राहत की सांस ली। अब उन्होंने घर के दरवाज़े पर बाहर से ताला लगा दिया और पिछले दरवाज़े से अन्दर आ गए। उसे भी उन्होंने कुंडी लगा दी और घर के सारे खिड़की दरवाजों के परदे बंद कर लिए।

प्रगति को उन्होंने पानी पिलाया और सोफे पर बैठेने का इशारा करते हुए रसोई में चले गए। अब तक दोनों में कोई बातचीत नहीं हुई थे। दोनों के मन में रहस्य, चोरी, कामुकता और डर का एक विचित्र मिश्रण हिंडोले ले रहा था। मास्टरजी तो बिलकुल बच्चे बन गए थे। प्रगति के चेहरे पर फिर भी एक शालीनता और आत्मविश्वास झलक रहा था। कल के मुकाबले आज वह मानसिक रूप से ज्यादा तैयार थी। उसके मन में डर कम और उत्सुकता ज़्यादा थी।

मास्टरजी रसोई से शरबत के दो ग्लास ले कर आये और प्रगति की तरफ एक ग्लास बढ़ाते हुए दूसरे ग्लास से खुद घूँट लेने लगे। प्रगति ने ग्लास ले लिया। गर्मी में चलकर आने में उसे प्यास भी लग गई थी। शरबत ख़त्म हो गया। दोनों ने कोई बातचीत नहीं की। दोनों को शायद बोलने के लिए कुछ सूझ नहीं रहा था। दोनों के मन में आगे जो होने वाला है उसकी शंकाएँ सर्वोपरि थीं।

मास्टरजी ने अंततः चुप्पी तोड़ी,"कैसी हो ?"

प्रगति सिर नीचा कर के चुप रही।

"मालिश के लिए तैयार हो?"

प्रगति कुछ नहीं बोली।

"मैं थोड़ी देर में आता हूँ, तुम मालिश के लिए तैयार होकर लेट जाओ।" यह कहकर मास्टरजी बाथरूम में चले गए।

प्रगति ने अपने कपड़े उतार कर सोफे पर करीने से रख दिए और चड्डी और चोली पहने ज़मीन पर गद्दे पर लेट गई और चादर से अपने आप को ढक लिया। अपने दोनों हाथ चादर के बाहर निकाल कर दोनों तरफ रख लिए।

मास्टरजी, वापस आये तो बोले," अरे तुम तो सीधी लेटी हो !! चलो उल्टी हो जाओ।"

प्रगति चादर के अन्दर ही अन्दर पलटने की नाकाम कोशिश करने लगी तो मास्टरजी ने बोला,"प्रगति, अब मुझसे क्या शर्माना। चलो जल्दी से पलट जाओ।"

प्रगति ने चादर एक तरफ करके करवट ले ली और उल्टी लेट गई। लेट कर चादर ऊपर लेने का प्रयास करने लगी तो मास्टरजी ने चादर परे करते हुए कहा,"अब इसकी कोई ज़रुरत नहीं है। "

"और इनकी भी कोई ज़रुरत नहीं है।" कहते हुए उन्होंने प्रगति की चड्डी नीचे खींच दी और टांगें उठा कर अलग कर दी। फिर चोली का हुक खोल कर प्रगति के पेट के नीचे हाथ डाल कर उसे ऊपर उठा लिया और चोली खींच कर हटा दी। अब प्रगति बिलकुल नंगी हो गई थी। हालाँकि वह उल्टी लेटी हुई थी, उसने अपने हाथों से अपनी आँखें बंद कर लीं उसके नितम्बों की मांसपेशियाँ स्वतः ही कस गईं।

मास्टरजी को प्रगति की यही अदाएं लुभाती थीं। उन्होंने उसकी पीठ और सिर पर हाथ फेर कर उसका हौसला बढ़ाया और उसकी मालिश करने में जुट गए।

गर्म तेल की मालिश से प्रगति को बहुत चैन मिल रहा था। कल के मुकाबले आज मास्टरजी ज़्यादा निश्चिंत हो कर हाथ चला रहे थे। उन्हें प्रगति के भयभीत हो कर भाग जाने का डर नहीं था क्योंकि आज तो वह सब कुछ जानते हुए भी अपने आप उनके घर आई थी। मतलब, उसे भी इस में मज़ा आ रहा होगा। मास्टरजी ने सही अनुमान लगाया।

थोड़ी देर के बाद मास्टरजी ने प्रगति के ऊपर घुड़सवारी सा आसन जमा लिया और अपना कुर्ता उतार दिया। अब वे सिर्फ लुंगी पहने हुए थे। लुंगी को उन्होंने घुटनों तक चढ़ा लिया था अपर उनका लिंग अभी भी लुंगी में छिपा था।

इस अवस्था में उन्होंने प्रगति के पिछले शरीर पर ऊपर से नीचे, यानि कन्धों से कूल्हों तक मालिश शुरू की। जब वे आगे की तरफ जाते तो जान बूझ कर अपनी लुंगी से ढके लिंग को प्रगति के चूतड़ों से छुला देते। कपड़े के छूने से प्रगति को जहाँ गुलगुली होती, मास्टरजी के लंड की रगड़ से उसे वहीं रोमांच भी होता। मास्टरजी को तो अच्छा लग ही रहा था, प्रगति को भी मज़ा आ रहा था। मास्टरजी ने अपने आसन को इस तरह तय किया कि जब वे आगे को हाथ ले जाएँ, उनका लंड प्रगति के चूतड़ों के बीच में, किसी हुक की मानिंद, लग जाये और उन्हें और आगे जाने से रोके। एक दो ऐसे वारों के बाद प्रगति ने अपनी टाँगें स्वयं थोड़ी खोल दीं जिससे उनका लंड अब प्रगति की गांड के छेद पर आकर रुकने लगा। जब ऐसा होता, प्रगति को सरसराहट सी होती और उसके रोंगटे से खड़े होने लगते। उधर मास्टरजी को प्रगति की इस व्यवस्था से बड़ा प्रोत्साहन मिला और उन्होंने जोश में आते हुए अपनी लुंगी उतार फेंकी।

अब वे दोनों पूरे नंगे थे। मास्टरजी ने प्रगति के हाथ उसकी आँखों पर से हटा कर बगल में कर दिए। अब वह एक तरफ से कुछ कुछ देख सकती थी। मास्टरजी ने अपने वार जारी रखे जिसके फलस्वरूप उनका लंड तन कर प्रबल और विशाल हो गया और प्रगति की गांड पर व्यापक प्रभाव डालने लगा।

मास्टरजी आपे से बाहर नहीं होना चाहते थे सो उन्होंने झट से अपने आप को नीचे की तरफ सरका लिया और प्रगति की टांगों पर ध्यान देने लगे। उनके हाथ प्रगति की जांघों के बीच की दरार में खजाने को टटोलने लगे। प्रगति से गुदगुदी सहन नहीं हो रही थी। वह हिलडुल कर बचाव करने लगी पर मास्टरजी के हाथों से बच नहीं पा रही थी। जब कुछ नहीं कर पाई तो करवट ले कर सीधी हो गई। अपनी टाँगें और आँखें बंद कर लीं और हाथों से स्तन ढक लिए। मास्टरजी इसी फिराक़ में थे। उन्होंने प्रगति के पेट, पर हाथ फेरते हुए प्रगति के हाथ उसके वक्ष से हटा दिए।

तेल लगा कर अब वे उसकी छाती की मालिश कर रहे थे। प्रगति के उरोज दमदार और मांसल लग रहे थे। उसकी चूचियां उठी हुई थीं और वह जल्दी जल्दी साँसें ले रही थी। मास्टरजी का लंड प्रगति की नाभि के ऊपर था और कभी कभी उनके लटके अंडकोष उसकी योनि के ऊपरी भाग को लग जाते। प्रगति बेचैन हो रही थी। उसमें वासना की अग्नि प्रज्वलित हो चुकी थी और उसकी योनि प्रकृति की अपार गुरुत्वाकर्षण ताक़त से मजबूर मास्टरजी के लिंग के लिए तृषित हो रही थी। सहसा उसकी योनि से द्रव्य पदार्थ रिसने लगा।

प्रगति की टांगें अपने आप खुल गईं और मास्टरजी के लिंग के अभिवादन को तत्पर हो गईं। मास्टरजी को समझ आ रहा था। पर वे जल्दी में नहीं थे। वे न केवल अपने लिए इस अनमोल अवसर को यादगार बनाना चाहते थे वे प्रगति के लिए भी उसके जीवन के सबसे महत्वपूर्ण क्षण को ज़्यादा से ज़्यादा आनंददायक बनाना चाहते थे। वे उसकी लालसा और बढ़ाना चाहते थे।

उन्होंने आगे खिसक कर प्रगति की आँखों पर पुच्ची की और फिर एक एक करके उसके चेहरे के हर हिस्से पर प्यार किया। जब तक उनके लब प्रगति के अधरों को लगे, प्रगति मचल उठी थी और उसने पहली बार कोई हरकत करते हुए मास्टरजी को अपनी बाँहों में ले लिया और ज़ोर से उनका चुम्बन कर लिया। जीवन में पहली बार उसने ऐसा किया था। ज़ाहिर था उसे इस कला में बहुत कुछ सीखना था।

मास्टरजी ने उसे चुम्बन सिखाने के लिए उसके मुँह में अपनी ज़ुबान डाली और उसके मुँह का निरीक्षण करने लगे। थोड़ी देर बाद, एक अच्छी शिष्या की तरह उसने भी अपनी जीभ मास्टरजी के मुख में डाल कर इधर उधर टटोलना शुरू किया। अब मास्टरजी प्रगति के ऊपर लेट गए थे और उनका सीना प्रगति के भरे और उभरे हुए उरोजों को दबा कर सपाट करने का बेकार प्रयत्न कर रहा था। प्रगति की चूचियां मास्टरजी के सीने में सींग मार रहीं थीं। मास्टरजी ने कुछ ही देर में प्रगति को चुम्बन कला में महारत दिला दी। अब वह जीभ चूसना, जीभ लड़ाना व मुँह के अन्दर के हिस्सों की जीभ से तहकीकात करने में निपुण लग रही थी।

मास्टरजी ने अगले पाठ की तरफ बढ़ते हुए अपने आप को नीचे सरका लिया और प्रगति के स्तनों को प्यार करने लगे। उसके बोबों की परिधि को अपनी जीभ से रेखांकित करके उन्होंने दोनों स्तनों के हर पहलू को अच्छे तरह से मुँह से तराशा। फिर जिस तरह कुत्ते का पिल्ला तश्तरी से दूध पीता है वे उसकी चूचियां लपलपाने लगे। गुदगुदी के कारण प्रगति लेटी लेटी उछलने लगी जिससे उसके स्तन मास्टरजी के मुँह से और भी टकराने लगे। थूक से बोबे गीले हो गए थे और इस ठंडक से उसे सिरहन सी हो रही थी।

अब मास्टरजी ने थोड़ा और नीचे की ओर रुख किया। उसके पेट और नाभि को चाटने लगे। प्रगति कसमसा रही थी और गुलगुली से बचने की कोशिश कर रही थी। कभी कभी अपने हाथों से उनके सिर को रोकने की चेष्टा भी करती थी पर मास्टरजी उसके हाथों को प्यार से अलग करके दबोच लेते थे।

अब उनका मुँह प्रगति की योनि के बहुत करीब आ गया था। उसकी योनि पानी के बाहर तड़पती मछली के होटों की तरह लपलपा रही थी। मास्टरजी ने अपनी जीभ से उसकी योनि के मुकुट मटर की परिक्रमा लगाई तो प्रगति एक फ़ुट उछल पड़ीं मानो घोड़ी दुलत्ती मार रही हो। मास्टरजी ने घोड़ी को वश में करने के लिए अपनी पकड़ मज़बूत की और जीभ से उसके भग-शिश्न को चाटने लगे। प्रगति पूरी ताक़त से अपने आप को मास्टरजी की गिरफ्त से छुटाने का प्रयास कर रही थी। मास्टरजी ने रहम करते हुए पकड़ ढीली की और अपने जीभ रूपी खोज उपकरण को प्रगति की योनि के ऊपर लगा दिया। प्रगति की दशा आसमान से गिरे खजूर में अटके सी हो रही थी।

उसका बदन छटपटा रहा था। उसकी उत्तेजना चरम सीमा पर पहुँच चुकी थी।

मास्टरजी ने कुछ देर योनि से छेड़छाड़ के बाद अपनी जीभ योनि के अन्दर डाल दी। बस, प्रगति का संयम टूट गया और वह आनंद से कराहने लगी।

मास्टरजी जान बूझ कर उसकी योनि का रस पान करना चाहते थे जिससे बाद में वे प्रगति से अपने लिंग का मुखाभिगम आसानी से करवा पायें। जो सुख वे प्रगति को दे रहे हैं, सूद समेत वापस लेना चाहते थे।

प्रगति की योनि तो पहले से ही भीगी हुई थी, मास्टरजी की लार से और भी गीली हो गई। अब मास्टरजी को लगा कि वह घड़ी आ गई है जिसकी उन्हें इतनी देर से प्रतीक्षा थी।

उन्होंने ने प्रगति से पूछा,"कैसा लग रहा है?"

प्रगति क्या कहती, चुप रही।

मास्टरजी,"भई चुप रहने से मुझे क्या पता चलेगा...। अच्छा, यह बताओ कोई तकलीफ तो नहीं हो रही?"

प्रगति,"जी नहीं !"

मास्टरजी,"चलो अच्छा है, तकलीफ नहीं हो रही। तो अच्छा लग रहा है या नहीं?"

प्रगति चुप रही और अपनी आँखें ढक लीं।

मास्टरजी,"तुम तो बहुत शरमा रही हो। शरमाने से काम नहीं चलेगा। मैं इतनी मेहनत कर रहा हूँ, यह तो बताओ कि मज़ा आ रहा है या नहीं?"

यह पूछते वक़्त मास्टरजी ने अपना लंड प्रगति की चूत से सटा दिया और हल्का हल्का हिलाने लगे। उनके हाथ प्रगति के पेट और उरोजों पर घूम रहे थे।

"जी, मज़ा आ रहा है।" प्रगति ने सच उगल दिया।

मास्टरजी,"तुम बहुत अच्छी लड़की हो। तुम चाहो तो इससे भी ज़्यादा मज़ा लूट सकती हो....। "

प्रगति चुप रही पर उसका रोम रोम जो कह रहा था वह मास्टरजी को साफ़ सुनाई दे रहा था। फिर भी वे उसके मुँह से सुनना चाहते थे।

मास्टरजी,"क्या कहती हो?"

"जैसा आप ठीक समझें।" प्रगति ने लाज शर्म त्यागते हुए कह ही दिया।

मास्टरजी,"मैं तो इसे ठीक समझता ही हूँ पर तुम्हारी सहमति भी तो जरूरी है। बोलो और मज़े लेना चाहती हो?"

प्रगति ने हाँ मैं सिर हिला दिया।

मास्टरजी,"ऐसे नहीं। जो भी चाहती हो बोल कर बताओ !"

प्रगति,"जी, और मज़े लेना चाहती हूँ।"

मास्टरजी," शाबाश। हो सकता है इसमें शुरू में थोड़ी पीड़ा हो। बोलो मंज़ूर है ?"

प्रगति,"जी मंज़ूर है।"

मास्टरजी ने अपना लंड प्रगति के योनि द्वार पर लगा ही रखा था। जैसे ही उसने अपनी मंजूरी दी, उन्होंने हल्का सा धक्का लगाया। चूंकि प्रगति की चूत पूरी तरह गीली थी और वह मानसिक व शारीरिक रूप से पूर्णतया उत्तेजित थी, मास्टरजी का औसत माप का लिंग उसकी तंग योनि में थोड़ा घुस गया। प्रगति के मुँह से एक हिचकी सी निकली और उसने पास रखे मास्टरजी के बाजुओं को कस कर पकड़ लिया।

मास्टरजी उसे कम से कम दर्द देकर उसका कुंवारापन लूटना चाहते थे। मास्टरजी ने आश्वासन के तौर पर लंड बाहर निकाला। प्रगति की पकड़ थोड़ी ढीली हुई और उसने एक लम्बी सांस छोड़ी। जैसे ही प्रगति ने सांस छोड़ी, मास्टरजी ने एक और वार किया। इस बार लंड थोड़ा और अन्दर गया पर प्रगति की कुंवारी योनि को नहीं भेद पाया। उसकी झिल्ली पहरेदार की तरह उनके लंड का रास्ता रोके खड़ी थी। प्रगति को इतना अचम्भा नहीं हुआ जितना पहली बार हुआ था फिर भी शायद वह वार के लिए तैयार नहीं थी। उसके मुँह से एक हल्की सी चीख निकल गई। मास्टरजी ने फिर से लंड बाहर निकाल लिया पर योनिद्वार पर ही रखा।

मास्टरजी ने उसके चूतड़ों को सहलाया और घुटनों पर पुच्ची की। हालाँकि वे उसे कम से कम दर्द देना चाहते थे पर वे जानते थे कि कुंवारेपन की झिल्ली कई बार कठोर होती है और आसानी से नहीं टूटती। शायद प्रगति की झिल्ली भी ऐसी ही थी। वे उसका ध्यान बँटा कर अचानक वार करना चाहते थे जिससे उसे कम से कम दर्द हो। जैसे डॉक्टर जब बच्चों को इंजेक्शन लगता है तो इधर उधर की बातों में लगा कर झट से सुई अन्दर कर देता है। नहीं तो बच्चे बहुत आनाकानी करते हैं और रोते हैं।

मास्टरजी,"प्रगति, तुम्हारा जन्मदिन कब है?"

"जी, २६ अगस्त को।"

"अच्छा, जन्मदिन कैसे मनाते हो ?"

"जी, कुछ ख़ास नहीं। मंदिर जाते हैं, पिताजी मिठाई लाते हैं। कभी कभी नए कपड़े भी मिल जाते हैं !"

मास्टरजी,"तुम यहाँ पर कितने सालों से हो ?"

यह सवालात करते वक़्त मास्टरजी अपने लंड से उसके योनिद्वार पर लगातार धीरे धीरे दस्तक दे रहे थे जिससे एक तो लंड कड़क रहे और दूसरा उनका निशाना न बिगड़े।

"जी, करीब पांच साल से।"

"तुम्हारे कितने भाई बहन हैं?"

"जी, हम तीन बहनें हैं। भाई कोई नहीं है!"

"ओह, तो भाई की कमी खलती होगी !"

"जी"

"कोई लड़का दोस्त है तुम्हारा ?"

"जी नहीं" प्रगति ने ज़ोर से कहा। मानो ऐसा होना गलत बात हो।

"इसमें कोई गलत बात क्या है। हर लड़की के जीवन में कोई न कोई लड़का तो होना ही चाहिए !"

"किसलिए ?"

"किस लिए क्या ? किस करने के लिए और क्या !! आज तुम्हें चुम्मी में मज़ा नहीं आया क्या ?"

"जी आया था !"

मास्टरजी ने अपने लंड के धक्कों का माप थोड़ा बढ़ाया।

"क्या तुम लड़की को ऐसी चुम्मी देना चाहोगी?"

"ना ना ..। कभी नहीं !"

"तो फिर लड़का होना चाहिए ना ?"

"जी"

"अगर कोई और नहीं है तो मुझे ही अपना दोस्त समझ लो, ठीक ?"

"जी ठीक"

उसके यह कहते ही मास्टरजी ने एक ज़ोरदार धक्का लगाया और उनका लंड इस बार प्रगति की झिल्ली के विरोध को पछाड़ते हुए काफी अन्दर चला गया।

प्रगति बातों में लगी थी और मास्टरजी की योजना नहीं जानती थी। इस अचानक आक्रमण से हक्की बक्की रह गई। उसकी योनि में एक तीव्र दर्द हुआ और उसको कुछ गर्म द्रव्य के बहने का अहसास हुआ। उसके मुँह से ज़ोर की चीख निकली और उसने मास्टरजी के हाथ ज़ोर से जकड़ लिए।

मास्टरजी थोड़ी देर रुके रहे। जब अचानक हुए दर्द का असर कुछ कम हुआ तो उन्होंने कहा,"मैंने कहा था थोड़ी पीड़ा होगी। बस अब नहीं होगी। यह दर्द तो तुम्हें कभी न कभी सहना ही था ...। हर लड़की को सहना पड़ता है।"

प्रगति कुछ नहीं बोली।

मास्टरजी का काम अभी पूरा नहीं हुआ था उनका लंड पूरी तरह प्रगति में समावेश नहीं हुआ था। बड़े धीरज के साथ उन्होंने फिर से लंड की हरकत शुरू की। वे प्रगति के शरीर पर चुम्मियां भी बरसा रहे थे और उसके चूत मटर के चारों ओर उंगली से हल्का दबाव भी डाल रहे थे। प्रगति को दर्द हो रहा था और वह उसे सहन कर रही थी। जब कि दर्द उसकी योनि के अन्दर हो रहा था उसके बाक़ी जिस्म में एक नया सा सुख फैल रहा था। उसको योनि दर्द का मुआवज़ा बाक़ी जगह के सुख से मिल रहा था। धीरे धीरे उसका दर्द कम हुआ।

मास्टरजी,"अब कैसा लग रहा है ? तुम कहो तो बंद करुँ ?"

प्रगति ने आँखों और सिर के इशारे से बताया वह ठीक है।

मास्टरजी,"ठीक है। कभी भी दर्द सहन न हो तो मुझे बता देना। इसमें तुम्हें भी मज़ा आना चाहिए। "

प्रगति,"जी बता दूंगी"

अब मास्टरजी ने जितना लंड अन्दर गया था उतनी दूरी के धक्के ही लगाने शुरू किये। प्रगति को कामोत्तेजित रखने के लिए उसके संवेदनशील अंगों को सहलाते रहे और उसकी खूबसूरती की प्रशंसा करते रहे। प्रगति धीरे धीरे उनके क्रिया-तंत्र से प्रभावित होने लगी और दर्द की अवहेलना करते हुए उनका साथ देने लगी।

प्रगति के उत्साह से मास्टरजी ने अपना ज़ोर बढ़ाया और अपने धक्कों में उन्नति लाते हुए प्रगति की योनि के और भीतर प्रवेश में जुट गए।

धैर्य और विश्वास के साथ हर नए धक्के में वे थोड़ी और प्रगति कर रहे थे। प्रगति भी उनकी इस सावधानी से खुश थी। उसे महसूस हो रहा था कि मास्टरजी उसका ध्यान अपनी खुशी की तुलना में ज़्यादा रख रहे हैं। उसके मन में मास्टरजी के प्रति प्यार उमड़ गया और उसने ऊपर उठकर उनके मुँह को चूम लिया। मास्टरजी इस पुरस्कार के प्रबल दावेदार थे। उन्होंने भी उसके होटों पर चुम्मी कर दी और दोनों मुस्करा दिए।

मास्टरजी ने अब अपना पौरुष दिखाना शुरू किया। अपने लंड से प्रगति के योनि दुर्ग पर निर्णायक फतह पाने के लिए उन्होंने युद्धघोष कर दिया। उनका दंड प्रगति की गुफा में अग्रसर हो रहा था। हर बार उनका लट्ठ पूरा बाहर आता और पूरे वेग से अन्दर प्रविष्ट होता। हर प्रहार में पिछली बार के मुकाबले ज़्यादा अन्दर जा रहा था। आम तौर पर तो इतनी देर में उनका लंड पूर्णतया घर कर गया होता पर प्रगति की नवेली चूत अत्यधिक तंग थी और मास्टरजी के लंड को नितांत घर्षण प्रदान कर रही थी। उनके आनंद की चरम सीमा नहीं थी। वे इस उन्माद का लम्बे समय तक उपभोग करना चाहते थे इसलिए उन्हें कोई जल्दी नहीं थी।

उधर प्रगति भी मास्टरजी के धैर्य युक्त रवैये से संतुष्ट थी और सम्भोग का आनंद उठा रही थे। अनायास ही उसके मुँह से किलकारियां निकलने लगीं। कभी कराहती कभी आहें भरती तो कभी कूकती। उसके इस संगीत से मास्टरजी का आत्मविश्वास बढ़ रहा था और वे अपने मैथुन वेग में विविधता ला रहे थे। चार पांच छोटे वार के बाद एक दो लम्बे वार करते जिनमें उनका लंड योनि से पूरा बाहर आ कर फिर से पूरा अन्दर जाता था। वार की गति में भी बदलाव लाते ...। कभी धीरे धीरे और कभी तेज़ तेज़।

इस परिवर्तन भरे क्रम से प्रगति की उत्सुकता बढ़ रही थी। उसे यह नहीं पता चल रहा था कि आगे कैसा वार होगा !! मास्टरजी का आत्म नियंत्रण अब अपनी सीमा के समीप पहुँच रहा था। बहुत देर से वे अपने आप को संभाले हुए थे। वे अपने स्खलन के पहले प्रगति को चरमोत्कर्ष तक पहुँचाना चाहते थे। इस लक्ष्य से उन्होंने प्रगति की भग-शिश्न (योनि मटर) को सुलगाना शुरू किया। कहते हैं यह भाग लड़की के शरीर का इतना संवेदनशील हिस्सा है कि इसको कभी पकड़ना, मसलना या सहलाना नहीं चाहिए। सिर्फ इसके इर्द गिर्द उंगली से लड़की को छेड़ना चाहिए। उसकी कामुकता को भड़काना चाहिए । अगर सीधे सीधे उसकी मटर को छुएंगे तो वह शायद सह नहीं पाए और उसकी कामाग्नि भड़कने के बजाय बुझने लगे....

मास्टरजी को यह सब पता था। वे सुनियोजित तरीके से प्रगति की वासना रूपी आग में मटर की छेड़छाड़ से मानो घी डाल रहे थे। प्रगति घी पड़ते ही प्रज्वलित हो गई और नागिन की तरह मास्टरजी के बीन रूपी लंड के सामने डोलने लगी। उसके मुँह से अद्भुत आवाजें आने लगीं। उसने अपनी टांगों से मास्टरजी की कमर को घेर लिया और उनके लिंग-योनि यातायात को और प्रघाढ़ बनाने में मदद करने लगी। उसने अपनी मुंदी आँखें खोल लीं और मास्टरजी को आदर और प्यार के प्रभावशाली मिश्रण से देखने लगी। मास्टरजी की आँखें आसमान की तरफ थीं और वे भुजंगासन में प्रगति को चोद रहे थे। उनकी साँसें तेज़ हो रहीं थीं। माथे पर पसीने की कुछ बूँदें छलक आईं थीं। वे एक निश्चित लय और ताल के साथ निरंतर ऊपर नीचे हो रहे थे। प्रगति उन्हें देख कर आत्म विभोर हो रही थी। उसे मास्टरजी पर अपना वशीकरण साफ़ दिख रहा था। उसने फिर से आँखें मूँद लीं और मास्टरजी की लय से लय मिला कर धक्कम पेल करने लगी।

अब उसके शरीर में एक तूफ़ान उत्पन्न होने लगा। उसे लगा मानो पूरा शरीर संवेदना से भर गया है। वह भौतिक सुख की सीढ़ीयों पर ऊपर को चली जा रही थी। उसमें उन्माद का नशा पनपने लगा। उसे लगा वह बेहोश हो जायेगी। मास्टरजी अपनी लय में लगे हुए थे। प्रगति का चैतन्य शरीर मोक्ष प्राप्ति की तरफ बढ़ रहा था।

फिर अचानक उसके गर्भ की गहराई में एक विस्फोट सा हुआ और वह थरथरा गई उसका जिस्म अकड़ कर उठा और धम्म से बिस्तर पर गिर गया। वह मूर्छित सी पड़ गई। उसकी योनि से एक धारा सी फूटी जिसने मास्टरजी के लंड को नहला दिया। उनका गीला लंड और भी चपल हो गया और चूत के अन्दर बाहर आसानी से फिसलने लगा। प्रगति के कामोन्माद को देख कर मास्टरजी का नियंत्रण भी टूट गया और उन्होंने एक संपूर्ण वार के साथ अपनी मोक्ष प्राप्ति कर ली। उनकी तृप्त आत्मा से एक सुखद चीत्कार निकली जिसने प्रगति की योगनिद्रा को भंग कर दिया। उनके लिंग से एक गाढ़ा, दमदार और ओजस्वी वीर्य प्रपात छूटा जो उन्होंने प्रगति के पेट और वक्ष स्थल पर उंडेल दिया। फिर थक कर खुद भी उस पर गिर गए।

प्रगति ने उनको अपनी बाँहों में भर लिया। प्रगति और मास्टरजी के शरीर उनके वीर्य रूपी गौंद से मानो चिपक से गए और वे न जाने कब तक यूँ ही लेटे रहे।

एक युग के बाद दोनों उठने को हुए तो पता चला की वीर्य गौंद से वे वाकई चिपक गए हैं। अलग होने की कोशिश में मास्टरजी के सीने के बाल खिंच रहे थे और कुछ टूट कर प्रगति के वक्ष पर लिस गए थे। प्रगति को अचानक शर्म सी आने लगी और वह अपने आप को छुड़ा कर अपने कपड़े लेकर गुसलखाने की ओर भाग गई। वह नहा कर बाहर आई तो मास्टरजी ने उसको एक बार फिर से आलिंगनबद्ध कर लिया और कृतज्ञ नज़रों से शुक्रिया देने लगे। प्रगति ने उनका गाल चूम कर उनका धन्यवाद किया और घर जाने के लिए निकलने लगी।

मास्टरजी ने उसे पिछ्वाड़े से बाहर जाने का रास्ता बताया। वह जाने ही वाली थी कि उसे याद आया और बोली,"मास्टरजी, आप अंजलि को कोई मिठाई देने वाले थे। उस समय तो वह जल्दी में थी। कहो तो मैं ले जाऊं। मेरी बहनें खुश हो जायेंगी !"

मास्टरजी एक ही दिन में तीन लड़कियों को खुश करने का मौका नहीं गवांना चाहते थे सो झट से बोले,"हाँ हाँ, क्यों नहीं। तुम पूरा डब्बा ही ले जाओ।" अब मुझे मिठाई की ज़रुरत नहीं रही। मेरी आत्मा तुम्हारे होंटों का रस पी कर हमेशा के लिए मीठी हो गई है।"

यह कहते हुए उन्होंने प्रगति को मिठाई का डब्बा पकड़ा दिया।

फिर उसकी आँखों में आँखें डाल कर बोले,"कल आओगी तो आज का मज़ा भूल जाओगी। कल एक विशेष पाठ पढ़ाना है तुम्हें। बोलो आओगी ना ? "

"जी पूरी कोशिश करूंगी !" अब तो प्रगति को रति सुख का चस्का लग गया था। लड़कियों को ख़ास तौर से इस चस्के का नशा बहुत गहरा लगता है !!!

मास्टरजी ने पहले घर के बाहर जा कर मुआइना कर लिया कि कहीं कोई है तो नहीं और फिर प्रगति को घर जाने की आज्ञा दे दी।

प्रगति अपनी सूजी हुई योनि लिए अपने घर को चल दी।

आपको यहाँ तक की कहानी कैसी लगी मुझे ज़रूर बताइए। आपके पत्रों और सुझावों का मुझे इंतज़ार रहेगा, ख़ास तौर से महिला पाठकों का क्योंकि लड़कियों के दृष्टिकोण का मुझे आभास नहीं है। उनके परामर्श मेरे लिए ज़रूरी हैं।

प्रगति का अतीत- 4


प्रगति का अतीत- 3 से आगे

किसी न किसी कारणवश मास्टरजी प्रगति से अगले 4-5 दिन नहीं मिल सके। प्रगति कोई न कोई बहाना करके उन्हें टाल रही थी। बाद में मास्टरजी को पता चला कि प्रगति को मासिक धर्म हो गया था। वे खुश हो गए। कामुकता के तैश में वे यह तो भूल ही गए थे कि उनकी इस हरकत से प्रगति गर्भ धारण कर सकती थी। इस परिणाम के महत्व को सोचकर उनके रोंगटे खड़े हो गए। वे ऐसी गलती कैसे कर बैठे। अपने आप को भाग्यशाली समझ रहे थे कि वे इतनी बड़ी भूल से होने वाले संकट से बच गए। उन्होंने तय किया ऐसा जोखिम वे दोबारा नहीं उठाएँगे।

उन्हें पता था कि आम तौर पर लड़की के मासिक धर्म शुरू होने से लगभग दस दिन पहले और लगभग दस दिन बाद तक का समय गर्भ धारण के लिए उपयुक्त नहीं होता। मतलब कि इस दौरान किये गए सम्भोग में लड़की के गर्भवती होने की सम्भावना कम होती है। कुछ लोग इसे सुरक्षित समय समझ कर बिना किसी सावधानी (कंडोम) के सम्भोग करना उचित समझते हैं। वैसे कई बार उनकी यह लापरवाही उन्हें महंगी पड़ती है और लड़की के गर्भ में अनचाहा बच्चा पनपने लगता है। अगर लड़की अविवाहित है तो उस पर अनेक सामाजिक दबाव पड़ जाते हैं जिससे उसके तन और मन दोनों पर दुष्प्रभाव होता है। एक गर्भवती के लिए ऐसे दुष्प्रभाव बहुत हानिकारक होते हैं। गर्भ धारण तो एक लड़की तथा उसके परिवार वालों के लिए सबसे ज्यादा खुशी का मौका होना चाहिए न कि समाज से आँखें चुराने का।

मास्टरजी ने भगवान का दुगना शुक्रिया अदा किया। एक तो उन्होंने प्रगति को गर्भवती नहीं बनाया दूसरे उन्हें प्रगति के मासिक धर्म की तारीख पता चल गई जिससे वे उसके साथ सुरक्षित सम्भोग के दिन जान गए। जिस दिन मासिक धर्म शुरू हुआ था उस दिन से दस दिन बाद तक प्रगति गर्भ से सुरक्षित थी। यानि अगले पांच दिन और।

यह सोच सोच कर मास्टरजी फूले नहीं समा रहे थे कि अगले पांच दिनों में वे प्रगति के साथ निश्चिन्तता के साथ मनमानी कर पाएंगे। आज प्रगति पांच दिनों के बाद आने वाली थी। यह सोचकर उनके मन में लड्डू फूट रहे थे और उनका लंड प्रत्याशित आनंद से फूल रहा था।

वहां प्रगति भी मास्टरजी से मिलने के लिए बेक़रार हो रही थी। उसके भोले भाले जवान जिस्म को एक नया नशा चढ़ गया था। जिन अनुभवों का उसके शरीर को अब तक बोध नहीं था वे उसके तन मन में खलबली मचा रहे थे। अचानक उसे सामान्य मनोरंजन की चीज़ों से कोई लगाव ही नहीं रहा। गुड्डे-गुडियां, आँख-मिचोली, ताश, उछल-कूद वगैरह जो अब तक उसे अच्छे लगते थे, मानो नीरस हो गए थे। उसे अपनी देह में नए नए प्रवाहों की अनुभूति होने लगी थी। उसकी इन्द्रियां उसे छेड़ती रहती थीं और उसका मन मास्टरजी के घर में गुज़रे क्षणों को याद करता रहता।

वह अपने आप को शीशे में ज्यादा निहारने लगी थी। उसके हाथ अपने यौवन के प्रमाण-रूपी स्तनों और स्पर्श की प्यासी योनि को सहलाने में लगे रहते।

उसने पिछले 4-5 दिनों में अपनी छोटी बहनों को अच्छे से पटा लिया था। मास्टरजी की मिठाई के आलावा उसने उनके लिए तरह तरह की चीज़ें बना कर दीं और उनको अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ खेल-कूद की आज़ादी दे दी। बदले में वह उनसे बस इतना चाहती थी कि मास्टरजी के यहाँ उसकी पढ़ाई की बात वे माँ-बापू को न बताएं। उनमें यह षडयंत्र हो गया कि एक दूसरे की शिकायत नहीं करेंगे और माँ-बापू को कुछ नहीं बताएँगे। प्रगति खुश हो गई। उसकी भोली बहनों को उसकी असली इच्छा पता नहीं थी। होती भी कैसे....? उनके शरीर को किसी ने अभी तक प्रज्वलित जो नहीं किया था। वे अभी बहुत छोटी थीं।

प्रगति को मास्टरजी ने 12 बजे का समय दिया था जिससे वे उसके साथ आराम से 4-5 घंटे बिता सकते थे। आज शनिवार होने के कारण स्कूल की छुट्टी थी। प्रगति ने जल्दी जल्दी घर का ज़रूरी काम निपटा दिया और दोपहर का खाना भी बना दिया जिससे अंजलि और छुटकी को उसके देर से घर वापस लौटने से कोई समस्या न हो। 11 बजे तक सब काम पूरा करके वह नहाने गई और अच्छी तरह से स्नान किया। फिर तैयार हो कर बालों में चमेली के फूलों की वेणी लगा कर ठीक समय पर अपने गंतव्य स्थान के लिए रवाना हो गई।

उधर मास्टरजी ने पहले की तरह सारी तैयारी कर ली थी। इस बार, ज़मीन के बजाय उन्होंने अपने बिस्तर पर प्रबंध किया था। वे जानते थे कि पहली पहली बार जब किसी लड़की को घर लाओ तो उसे बेडरूम में नहीं ले जाना चाहिए क्योंकि ज्यादातर लड़कियां वहां जाने से कतराती हैं। शुरू शुरू की मुलाक़ात में लड़की को ऐसा प्रतीत नहीं होना चाहिए कि तुम्हारा इरादा सम्भोग करने का है। यह बात अगर वह जानती भी हो तो भी पहला मिलन बेडरूम के बाहर होना उसके लिए मनोवैज्ञानिक तौर पर ठीक होता है। वह अपने आपको सुरक्षित महसूस करती है !!

जब एक बार शारीरिक सम्बन्ध स्थापित हो जाएँ फिर फ़र्क नहीं पड़ता !!

अब तो प्रगति के साथ उनके संबंधों में कोई भेद नहीं रह गया था। अब वे उसे निःसंकोच अपनी शय्या पर ले जा सकते थे। उन्होंने ऐसा ही किया। साथ ही उन्होंने एक कटोरी में शहद डाल कर सिरहाने के पास छुपा दिया। एक छोटा तौलिया और गुनगुने पानी की छोटी बालटी भी पास में रख ली। उनका इरादा प्रगति को एक नई प्रक्रिया सिखाने का था।

प्रगति ठीक समय पर मास्टरजी के घर पहुँच गई और एक पूर्वानुमानित तरीके से चुपचाप पीछे के दरवाज़े से अन्दर प्रवेश कर गई। लुकी छुपी नज़रों से उसने पहले ही यकीन कर लिया था कि कोई उसे देख न रहा हो। पहले की तरह बाहर का दरवाजा तालाबंद था। अब वे दोनों कामदेव के अखाड़े में चिंतामुक्त अवस्था में प्रवेश कर चुके थे। दोनों ने एक दूसरे को देख कर एक राहत की सांस ली। उन्हें डर था कहीं कोई मुश्किल उनके मिलन में बाधा न बन जाए। अब तक सब ठीक था और वे भगवान् का शुक्रिया अदा कर रहे थे।

दोनों ने बिना किसी वार्तालाप के एक दूसरे को आलिंगन में ले लिया और बहुत देर तक आपसी सपर्श का आनंद उठाते रहे। मास्टरजी ने बिना ढील दिए अपने होटों को प्रगति के होटों पर रख दिया और पिछले पांच दिनों के विरह का हरजाना सा लेने लगे। प्रगति भी एक श्रेष्ठ शिष्या का प्रमाण देते हुए उनके होटों को अपनी जीभ से खोल कर मास्टरजी के मुँह की जांच परख करने लगी।

प्रगति की इस हरकत ने मास्टरजी की सुप्त इन्द्रियों को जखझोर दिया और उनके शरीर के निम्न हिस्से में रक्तसंचार की वृद्धि होने लगी। इसके फलस्वरूप उनके लंड में ऊर्जा उत्पन्न हुई और वह वस्त्र-युक्त होने के बावजूद अपने अस्तित्व का प्रमाण प्रगति की जांघों को देने लगा। प्रगति को मास्टरजी के लंड की यह शरारत अच्छी लगी और उसने स्वतः अपनी जांघें थोड़ी खोल कर उसका स्वागत किया।

मास्टरजी के लंड को प्रगति की जांघों का अभिवादन पसंद आया और उसने रिक्त स्थान में अपनी जगह बना ली। प्रगति को यह और भी अच्छा लगा और उसने मास्टरजी को कसकर जकड़ लिया। कुछ देर ऐसे रहने के बाद दोनों की पकड़ ढीली हुई और वे अलग हो गए।

मास्टरजी ने शांति भंग करते हुए पूछा," कुछ खाओगी ? भूख लगी है?"

प्रगति,"अभी नहीं। आपको?"

मास्टरजी,"मुझे भी अभी नहीं। थोड़ी देर बाद देखेंगे, ठीक है ?"

प्रगति,"जी, ठीक है !"

" चलो फिर यहाँ आ जाओ !" कहते हुए मास्टरजी प्रगति को बेडरूम में ले गए।

बिस्तर देख कर प्रगति को भी चैन आया। मास्टरजी ने उसके कपड़े उतारने शुरू किये और थोड़ी देर में उसे पूरा निर्वस्त्र करके बिस्तर पर चित्त लिटा दिया। उसका आधा शरीर बिस्तर पर और चूतड़ों से नीचे का भाग नीचे लटका दिया। इस तरह उसकी योनि बिस्तर के किनारे पर थी।

मास्टरजी ने पास रखे छोटे तौलिये को गुनगुने पानी में भिगो कर निचोड़ लिया और प्रगति के स्तन, पेट और नीचे के हिस्से को अच्छे से पोंछने लगे। वैसे तो प्रगति नहा कर आई थी पर मास्टरजी उसके शरीर को न केवल साफ़ कर रहे थे, वे उसकी कामुकता को भी उकसा रहे थे। उन्होंने उसकी योनि के आस पास और उसकी जांघों की सफाई की और फिर तौलिया सुखाने के लिए कुर्सी पर फैला दिया।

मास्टरजी ने अपने कपड़े भी उतार दिए और पूर्ण नग्न अवस्था में प्रगति की टांगों के बीच ज़मीन पर बैठ गए। उन्हें नीचे बैठता देख कर प्रगति एकदम उठ कर बैठ गई और खुद भी नीचे आने लगी तो मास्टरजी ने उसे वापस वैसे ही लिटा दिया। उसकी टांगें खोल दीं तथा उसको थोड़ा अपनी तरफ खींच लिया जिससे उसकी चूत बिस्तर से अधर हो गई और मास्टरजी के मुँह की पहुँच तक आ गई। प्रगति एक बार पहले अपनी चूत पर मास्टरजी के मुँह का अनुभव कर चुकी थी और एक बार फिर उस अनुभूति की अपेक्षा से उसका जिस्म उत्तेजित हो गया। उसने अपनी आँखें मूँद लीं और हाथों से ढक लीं।

मास्टरजी ने अपने शरीर के किसी और हिस्से को प्रगति से नहीं लगने दिया और सीधे अपनी जीभ प्रगति की योनि के बीचोंबीच लगा दी। प्रगति को मानो 11000 वोल्ट का झटका लगा और हालाँकि वह इसके लिए तैयार थी फिर भी ज़ोर से फुदक गई और अपनी टाँगें ऊपर उठा लीं। मास्टरजी ने जैसे तैसे प्रगति को नियंत्रण में किया और धीरे धीरे उसकी चूत चाटने लगे। कभी अपनी जीभ उसके योनिद्वार के चारों तरफ घुमाते, कभी दायें बाएँ की हरकत करते तो कभी ऊपर नीचे की। कभी जीभ को नौकीला करके उसकी योनि के नरम होटों पर दबाव डालते तो कभी जीभ फैला कर पूरी योनि के पटलों पर फेरते।

प्रगति को स्वर्ग का साक्षात्कार हो रहा था। उसकी देह में गुदगुदी, सरसराहट, गर्मी, ठंडक और न जाने कितने और अनुभवों का जबरदस्त मिश्रण हिंडोले ले रहा था। उसकी देह अनियंत्रित ढंग से लहरा रही थी। जैसे एक तितली तेज़ हवा में फूल के साथ लहराते हुए चिपकी रहती है, मास्टरजी की जीभ भी प्रगति की योनि के साथ चिपकी हुई थी और उसके साथ लहरा रही थी।

थोड़ी देर में प्रगति के उन्माद की तीव्रता हल्की हुई और उसका शरीर इन गुलगुले अहसासों का आदि हुआ तो उसका लहराना बंद हुआ और वह सचेत सी लेटी रही। उसकी चूत से पानी झरझर बह रहा था और मास्टरजी के मुँह को ओत-प्रोत कर रहा था। अब मास्टरजी ने कदम बढ़ाते हुए अगला पैंतरा पकड़ा और अपनी जीभ को नुकीला करते हुए उससे योनि की पंखुडियों को अलग अलग करने लगे। जीभ के अन्दर प्रवेश से प्रगति में फिर से भूचाल आ गया और वह फिर से बेतहाशा हिलने लगी। मास्टरजी उसकी हलचल का फ़ायदा उठाते हुए अपनी जीभ उसकी चूत के अन्दर बाहर करने लगे।

यद्यपि जीभ करीब आधा इंच ही अन्दर बाहर हो पा रही थी, प्रगति को संपूर्ण आनंद मिल रहा था। उसे क्या पता था कि योनि का बाहरी लगभग एक इंच का हिस्सा ही संवेदनशील होता है क्योंकि इस एक इंच के हिस्से में ही सारी धमनियां होती हैं जिनमें स्पर्श का अनुभव करने की शक्ति होती है। योनि के भीतर के हिस्से में ये धमनियां नहीं होतीं और उन हिस्सों में कोई चेतना नहीं होती। इसीलिये कहते हैं कि स्त्री को भौतिक सुख देने के लिए बड़े लिंग की ज़रुरत नहीं होती। एक इंच का लिंग ही काफी है। बहुत से मर्द व्यर्थ ही अपने लिंग के माप और आकार को लेकर चिंतित रहते हैं। माप और आकार से कहीं ज्यादा महत्व उसके उपयोग का होता है। किस तरह एक मर्द अपने लिंग से स्त्री को उत्तेजित करता है और उसको अपना प्यार दर्शाता है।

इस तथ्य का इससे बेहतर क्या प्रमाण हो सकता है कि हर लड़की जीभ से किये गए योनि स्पर्श से पूरी तरह उत्तेजित और तृप्त तथा संतुष्ट हो जाती है। जीभ का आकार और माप तो आम लिंग के मुक़ाबले बहुत छोटा होता है। बड़े लंड से मर्दों के स्वाभिमान को हवा मिलती हो पर ज़रूरी नहीं कि लड़की को भी ज्यादा सुख मिलता है।

मास्टरजी ने जीभ से प्रगति को चोदना शुरू किया और बीच बीच में जीभ से उसके योनिद्वार के मुकुट पर स्थित मटर की भी परिक्रमा करने लगे। विविधता लाने के लिए वे कभी कभी योनि के बाहर दोनों तरफ की जांघों को चाट लेते थे। प्रगति के जननांग तरावट से ठंडक महसूस कर रहे थे। उसे बहुत मज़ा आ रहा था और वह अपनी चूत को मास्टरजी के मुख के पास रखने की कोशिश में रहती।

मास्टरजी की जीभ थकने लगी तो वे उठ गए और उन्होंने प्रगति को करवट लेने को कहा। प्रगति झट से अपने पेट पर लेट गई।

एक बार फिर मास्टरजी ने गीले तौलिये से प्रगति की पीठ, चूतड़ और जांघों के पिछले हिस्से को पौंछ कर साफ़ कर लिया। फिर प्रगति को उन्होंने इतना पीछे खींच लिया जिससे उसके घुटने ज़मीन पर टिक गए और पेट से आगे तक का हिस्सा बिस्तर पर रह गया। उसके चूतड़ों की ऊंचाई ठीक करने के लिए उसके पेट के नीचे एक तकिया रख दिया। एक छोटा स्टूल लेकर वे उसके चूतड़ों के पीछे पास आकर बैठ गए। हाथों से उसके चूतड़ों के गाल इस तरह अलग लिए कि उसकी गांड दिखाई देने लगी। फिर उन्होंने नीचे से उसकी योनि को चाटना शुरू किया और इस बार उनकी जीभ योनि से नीचे होते हुए चूतड़ों की दरार में आने लगी। कुछ समय बाद उनकी जीभ का भ्रमण योनि से लेकर दरार में होता हुआ उसकी गांड के छेद तक होने लगा। प्रगति को ऐसा अनुभव पहले नहीं हुआ था। मास्टरजी की जीभ का स्पर्श उसे मंत्रमुग्ध कर रहा था।

मास्टरजी की जीभ उसके गुप्तांगों में ऐसे फिर रही थी मानो कोई लिफाफे पर गौंद लगा रही हो। प्रगति का सुखद कराहना शुरू हो गया था। मास्टरजी की जीभ अब उसकी गांड के छेद पर केन्द्रित हो गई और उसके गोल गोल चक्कर लगाने लगी। एक दो बार उन्होंने जीभ को पैना कर के गांड के अन्दर डालने की कोशिश भी की पर प्रगति ने अपनी गांड को कस कर बंद किया हुआ था। वह सातवें आसमान पर थी। उसकी योनि से पानी छूटने लगा था और वह इस कदर उत्तेजित हो गई थी अपने ऊपर काबू पाना मुश्किल हो रहा था। लज्जा और संस्कार उसे बांधे हुए थे वरना वह कबकी मास्टरजी से चोदने के लिए कह देती।

मास्टरजी ने अपनी थकी हुई जीभ को आराम देते हुए अपने आप को प्रगति के तिलमिलाते शरीर से अलग किया और उसके पास आकर लेट गए। प्रगति एकदम उनके ऊपर आ कर लेट गई और उन पर चुम्मियों के बौछार कर दी। मास्टरजी उसकी गांड तक में जीभ डाल देंगे, प्रगति को बड़ा अचरज था।

वह उनका किस तरह धन्यवाद करे सोच नहीं पा रही थी ......। पर मास्टरजी को मालूम था !

उन्होंने उसके असमंजस को भांपते हुए उसे अपने पास बैठने का इशारा किया और पूछा,"बोलो, कैसा लगा?"

प्रगति के पास शब्द नहीं थे फिर भी बोली,"मैं स्वर्ग में थी !"

मास्टरजी,"कोई तकलीफ तो नहीं हुई ?"

प्रगति,"मुझे काहे की तकलीफ होती ?"

मास्टरजी,"अच्छा, तो क्या मुझे भी स्वर्ग का अनुभव करा दोगी ?"

"आप जो भी चाहोगे, करूंगी !" प्रगति ने स्पष्ट किया।

मास्टरजी की बांछें खिल गईं और वे मुस्करा दिए।

अब मास्टरजी के मज़े लूटने की बारी थी। उन्होंने प्रगति को तौलिये और बाल्टी की तरफ इशारा करते हुए बताया कि वह उन्हें वैसे ही पौंछ कर साफ़ करे जैसा उन्होंने उसे किया था। प्रगति फ़ुर्ती से उठी और तौलिया लेकर शुरू होने लगी पर पानी छूकर बोली,"मास्टरजी, यह तो ठंडा हो गया !"

मास्टरजी,"ओह, लाओ मैं गर्म पानी ले आता हूँ।"

प्रगति,"आप रुको, मैं ले आती हूँ !" कहते हुए वह गुसलखाने में चली गई और वहां से गर्म पानी ले आई। उसको इस तरह अपने घर में नंगी घूमते देख कर मास्टरजी को बहुत अच्छा लगा। उनका मन हो रहा था वह हमेशा उनके साथ रहे और इसी तरह घर में नंगी ही फिरती रहे। जब वह बालटी लेकर वापस आई और उसने मास्टरजी को उसे एकटक देखते हुए देखा तो उसे अपने नंगेपन का अहसास हुआ और वह यकायक शरमा गई। उसने अपना दुपट्टा अपने ऊपर ले लिया। मास्टरजी ने उसका दुपट्टा छीनते हुए कहा,"तुम तो मुझे स्वर्ग दिखाना चाहती थी फिर उसे छुपा क्यों रही हो? तुम बहुत अच्छी लग रही हो। मुझे देखने दो !!"

प्रगति ने दुपट्टा अलग रख दिया और मास्टरजी को स्पंज बाथ देने लगी। मास्टरजी उसे बताते जा रहे थे कि शरीर पर कहाँ कहाँ तौलिया लगाना है और वह एक आज्ञाकारी शिष्या की तरह उनका कहना मान रही थी।

छाती, पेट और जाँघों का साफ़ करने के बाद मास्टरजी ने उसे उनका लंड और उसके आस पास का इलाका पोंछने को कहा। प्रगति को उनका लिंग पकड़ने में संकोच हो रहा था।

मास्टरजी,"क्यों क्या हुआ ? शर्म आ रही है ?"

प्रगति,"जी !"

मास्टरजी,"इसमें शर्म की क्या बात है ? लो अपने हाथ में लो और इसे भी साफ़ करो।"

प्रगति,"जी !"

प्रगति ने पोले हाथों से जब उनके लंड को अपने हाथों में लिया तो दोनों को एक करंट सा लगा। हाथ में आते ही उनका शिथिलाया हुआ सा लंड घना और ठोस होने लगा। प्रगति को उसके इस कायाकल्प की उम्मीद नहीं थी और वह अचरज में पड़ गई। उसके हाथों में उनका लंड बड़ा होने लगा और कठोर भी हो गया।

उसने धीरे धीरे, डरते डरते, उनके लिंग को गीले तौलिये से पौंछना शुरू कर दिया। मास्टरजी को उसका यह सहमा हुआ अंदाज़ बहुत अच्छा लग रहा था और साथ ही उसके नरम हाथों का लंड पर स्पर्श बड़ा आनंद दे रहा था। जब लंड और अन्डकोषों की सफाई हो गई तो उन्होंने प्रगति को तौलिया सुखाने का संकेत दिया और अपने पास बैठने को कहा। जब वह पास बैठ गई तो मास्टरजी बोले,"देखो प्रगति, जब एक लड़की को किसी आदमी से सच्चा प्यार होता है तो वह उसके लिए कुछ भी कर सकती है। है ना ?"

प्रगति,"जी हाँ !"

मास्टरजी,"क्या तुम मुझसे सच्चा प्यार करती हो ?"

प्रगति,"जी हाँ !"

मास्टरजी," तो क्या तुम मेरी खुशी के किये कुछ भी करोगी ?"

प्रगति," जी, बिल्कुल !"

मास्टरजी,"तो फिर मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर चूसो !"

प्रगति को बड़ी हिचकिचाहट हो रही थी। उसे बदन के ये हिस्से गंदे लगते थे क्योंकि इनमें से मल-मूत्र निकलता था। वह धर्म-संकट में फँस गई थी। एक तरफ उसका असली संकोच और दूसरी तरफ मास्टरजी का उस पर अहसान जो उन्होंने उसकी चूत और गांड चूस कर किया था। अगर वे कर सकते हैं तो उसे भी कर लेना चाहिए। तर्क और बुद्धि का तो यही तकाज़ा था। उसने मन कड़ा करके अपने मुँह को मास्टरजी के लंड के पास ले आई पर उसे मुँह के अन्दर नहीं ले पाई। जैसे एक शाकाहारी किसी मांस के कौर को मुँह में नहीं ले पाता उसी प्रकार प्रगति भी विवश सी लग रही थी। मास्टरजी उसकी विपदा को समझ गए और बैठ गए। उनका लंड भी मुरझा गया था। उन्होंने पास में छुपाई हुई शहद की कटोरी निकाली और उसे अपने लिंग के आस पास पेट और जांघों पर लगा लिया।

फिर प्रगति से बोले,"शहद सेहत के लिए अच्छा होता है। इसे तो चाट सकती हो ना?"

प्रगति बिना उत्तर दिए झुक कर उनके पेट पर से शहद चाटने लगी। धीरे धीरे उसका मुँह उनके लिंग के करीब आता जा रहा था। मास्टरजी को यह बहुत ही उत्तेजक लग रहा था। उसके मुँह से होती गुदगुदी के आलावा उसके बालों की लटें मास्टरजी के पेट पर लोट कर उन्हें गुदगुदा रहीं थीं। जब प्रगति ने सारा शहद चाट लिया तो उन्होंने इस बार शहद अपने लंड की छड़ पर लगा दिया और प्रगति को देखने लगे। प्रगति ने उनके लंड की छड़ को चाटना शुरू किया। वह इस कला में अबोध थी और पर उसका निश्चय मास्टरजी को खुश करने का था सो जैसे बन पड़ रहा था अपनी जीभ से कर रही थी। मास्टरजी को प्रगति की अप्रशिक्षित विधि भी अच्छे लग रही थी क्योंकि उसमें सच्चा प्यार था। मास्टरजी उसको इशारों से बताते जा रहे थे कि किस तरह लंड की छड़ को ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर की तरफ चाटा जाता है। वे अपनी जीभ से अपनी बीच की उंगली पर नमूने के तौर पर क्रिया कर रहे थे और प्रगति उन्हें देख देख कर उनके लंड पर वही प्रक्रिया दोहरा रही थी।

आखिर में मास्टरजी ने शहद अपने लंड के सुपारे पर लगा दिया और थोड़ा बहुत छड़ पर भी मल लिया। प्रगति को थोड़ा सुस्ताने का मौका मिला और जब मास्टरजी दोबारा लेटे तो उसने पहली बार उनके लंड के सुपारे को अपने मुँह में लिया। मास्टरजी को उसके मुँह की गर्माइश बहुत अच्छी लगी और उनका लंड उत्तेजना से और भी फूल गया। प्रगति सुपारे पर लगे शहद को लौलीपॉप की तरह चूस रही थी। मास्टरजी संवेदना में छटपटाने लगे और उनका लिंग इधर उधर हिलने लगा। प्रगति उसको मुँह में रखने के लिए संघर्ष करने लगी और आखिरकार फतह पा ली। उसने उनके सुपारे को मुँह में ले ही लिया। अब मास्टरजी ने उसे लंड को मुँह के और अन्दर लेने का संकेत किया। सुपारा बहुत बड़ा था और प्रगति का मुँह छोटा लग रहा था पर प्रगति ने किसी तरह उसे मुँह में ले ही लिया। मास्टरजी ने अपने मुँह में अपनी उंगली डाल कर प्रगति को अगली क्रिया का प्रदर्शन किया। प्रगति उनके दर्शाए तरीके से उनके लंड को मुँह के अन्दर बाहर करने लगी।

कुछ देर में जैसे उसका मुँह उनके लंड के लायक खुल गया और वह लगभग पूरा लंड अन्दर-बाहर करने लगी। बस एक-डेढ़ इंच ही बाहर रह रहा था। मास्टरजी को अत्याधिक आनंद आ रहा था और वे कुछ कुछ आवाजें निकालने लगे थे।

प्रगति सांस लेने के लिए थोड़ा रुकी तो मास्टरजी उठ कर खड़े हो गए और प्रगति को अपने सामने घुटनों पर बैठने का आदेश दे दिया। अब उन्होंने प्रगति के मुख में लंड प्रवेश करते हुए उसके मुख को चोदने लगे। उन्होंने प्रगति का सर उसकी चोटी से पकड़ लिया और सम्भोग समान धक्के लगाने लगे। जब उनका लंड ज्यादा अन्दर चला जाता तो प्रगति का गला घुटने लगता और उसकी खांसी सी उठ जाती। मास्टरजी थोड़ा रुक कर फिर शुरू हो जाते। वे उसके मुँह और गले की धारण क्षमता बढ़ाना चाहते थे जिससे उनका पूरा लंड अन्दर जा सके। पर शायद यह संभव नहीं हो पा रहा था। कुछ तो प्रगति को अभ्यास नहीं था और कुछ उसे गला घुटने का डर भी था।

मास्टरजी ने आखिर प्रगति को बिस्तर पर सीधा (पीठ के बल) लेटने को कहा और उसके सिर को बिस्तर के किनारे से नीचे को लटका दिया। सिर के अलावा उसका पूरा शरीर बिस्तर पर था और उसका सिर पीछे की तरफ हो कर गर्दन से नीचे लटक रहा था। उन्होंने कुछ तकियों का सहारा लेकर उसके सिर की ऊंचाई को ठीक किया जिससे उसका मुँह उनके लंड के बराबर ऊपर हो गया।

अब मास्टरजी ने उसे निर्देश देने शुरू किये,"प्रगति, अपना मुँह पूरा खोलो!"

प्रगति ने मुँह खोल लिया।

"और खोलो !"

प्रगति ने जितना हो सकता था और खोल लिया।

"अब अपनी जीभ बाहर निकालो !"

प्रगति ने जीभ बाहर निकाल ली और दुर्गा माँ का सा रूप धारण कर लिया !!

"अब ऐसे ही रहना। मैं लंड अन्दर डालूँगा। घबराना नहीं !"

यह कहते हुए मास्टरजी लंड उसके मुँह में डालने लगे। प्रगति की जीभ अचानक उसके मुँह में अन्दर चली गई।

मास्टरजी,"प्रगति, जीभ बाहर रखने की कोशिश करो। मेरे लंड को जीभ बाहर रखते हुए ही मुँह में लेना है, समझ गई ?"

"जी मास्टरजी !"

एक बार फिर कोशिश की पर प्रगति की ज़ुबान एकाएक अन्दर चली जाती थी। पर वह खुद ही बोली," मास्टरजी, ठहरिये !" और फिर एक लम्बी सांस लेने के बाद और अपने सिर को तकिये पर ठीक से रखने के बाद बोली,"चलो, इस बार देखते हैं क्या होता है !" और अपना मुँह चौड़ा खोल कर जीभ बाहर खींच कर तैयार हो गई। मास्टरजी ने अपना लंड फिर से उसके मुँह में डालने का प्रयत्न किया। इस बार लंड अन्दर चला गया और जीभ बाहर ही रही। जीभ के बाहर रहने से प्रगति के मुँह में लंड के लिए जगह बन गई और लगभग पूरा लंड अन्दर चला गया। मास्टरजी ने प्रगति के शरीर को थपथपा कर शाबाशी दी और पूछा "कैसा लग रहा है ?"

प्रगति कुछ कहने की स्थिति में नहीं थी। उसकी मानो बोलती बंद थी !!! अपने हाथ का अंगूठा ऊपर उठा कर "ओ के" का संकेत दे दिया। मास्टरजी ने धीरे धीरे उसके मुँह को चोदना शुरू किया। अब प्रगति का मुँह उसकी योनि का स्थान ले चुका था और योनि के सामान गीला और चिकना भी लग रहा था। पर जहाँ योनि सिर्फ एक गुफा रूपी छेद होती है, मुँह में खोलने-बंद करना की क्षमता व जीभ और दांत भी होते हैं जिनका अगर उपयुक्त इस्तेमाल किया जाए तो वह योनि से कहीं ज्यादा आनंद प्रदान कर सकता है।

जैसे जैसे प्रगति के मुँह को लंड के प्रवास का अभ्यास होता गया, वह घबराहट छोड़ कर सहज और निश्चिंत हो गया। उसका मुँह सरलता से लंड के व्यापक रूप को धारण करने लगा। मास्टरजी को जब ऐसा लगा कि प्रगति अब सहजता महसूस कर रही है, उन्होंने अपने वारों की लम्बाई बढ़ानी शुरू की। वे पूरा का पूरा लंड अन्दर बाहर करना चाहते थे। प्रगति को उनके लंड को पूरा ग्रहण करने में दिक्कत हो रही थी। कभी कभी उसका गला घुटने सा लगता और उसको उबकाई सी आ जाती। पर वह मास्टरजी की खुशी की खातिर अपनी विकलता को नज़रंदाज़ करते हुए उनका साथ दे रही थी। मास्टरजी लगातार बढ़ते हुए वार कर रहे थे और उनका लंड धीरे धीरे और ज्यादा अन्दर जाता जा रहा था। आखिर एक वार ऐसा आया जब उनका संपूर्ण लंड प्रगति के मुँह से होता हुआ गले में उतर गया। प्रगति का शरीर प्रतिक्रिया में लंड को उगलने लगा पर प्रगति ने पूरा बाहर नहीं निकलने दिया। उसने इशारे से मास्टरजी को चालू रहने को कहा। मास्टरजी ने सावधानी से फिर चोदना शुरू किया।

अब तो प्रगति का मुख शायद लंड का आदि हो गया था। प्रगति को गला घुटने या उबकाई की कठिनाई भी दूर हो गई। कहते हैं मानव शरीर किसी भी अवस्था का आदि बनाया जा सकता है। कुछ लोग बर्फीले इलाके में निर्वस्त्र रह लेते हैं; कुछ लोग ग्लास खा पाते हैं, कुछ लोग आग के अंगारों पर नंगे पांव चल लेते हैं। शरीर को जैसे ढालो, ढल जाता है। प्रगति का मुख और गला भी शायद उस ककड़ी-नुमा लंड के आकार में ढल गए थे। मास्टरजी का लंड बिना हिचक के पूरा अन्दर बाहर हो रहा था और थोड़ी थोड़ी देर में वे उसको प्रगति के गले तक में उतार के कुछ देर के लिए रुक जाते थे।

मास्टरजी प्रगति के धैर्य, सहनशक्ति और सहयोग की मन ही मन दाद दे रहे थे। उनकी खुशी परमोत्कर्ष पर पहुँचने वाली थी। उन्होंने अपने झटकों की गति बढ़ाई और जैसे ही उनके अन्दर का ज्वारभाटा विस्फोट करके बाहर आने को हुआ उन्होंने एक गहरा धक्का अन्दर को लगाया और अपने लंड को मूठ तक प्रगति के मुँह में गाड़ दिया। फिर उनके बहुत देर से नियंत्रित लावे का द्वार फूट कर खुल गया और न जाने कितनी पिचकारियाँ प्रगति के कंठ में छूट गईं।

मास्टरजी हांफ रहे थे और प्रगति एक नन्हे मुन्ने बच्चे की तरह मुँह से मास्टरजी का दूध उगल रही थी। मास्टरजी ने कुछ देर रुक कर अपना लंड बाहर निकाल लिया। प्रगति उसी अवस्था में लेटी रही और उनके वीर्य को निगल गई। मास्टरजी ने अपने लथपथ लिंग को प्रगति के मुँह के ऊपर लटकाते हुए कहा,"यह हमारे प्यार और परिश्रम का फल है। इसे व्यर्थ न जाने दो। " प्रगति ने उनके लिंग को मुँह में लेकर चूस और चाट कर साफ़ कर दिया।

फिर दोनों उठ गए। मास्टरजी ने प्रगति को गले से लगा लिया और बहुत देर तक उसके साथ चिपटे रहे। फिर उसे गुसलखाने की तरफ ले जाते हुए बोले,"आज तुमने मुझे बहुत खुश किया। तुम कमाल की लड़की हो !"

"आपने भी तो मेरे लिए कितना कुछ किया !" प्रगति ने शरमाते हुए जवाब दिया।

"पर तुमने जो किया वह ज्यादा मुश्किल था !" मास्टरजी ने स्वीकार किया।

प्रगति खुश हो गई।

घड़ी में एक बज रहा था अभी उनके पास काफी समय शेष था।

वे दोनों नहाने के लिए चले गए।

आपको यहाँ तक की कहानी कैसी लगी?

इसके आगे क्या हुआ, अगले अंक में पढ़िये !